स्वयं में स्वयं की खोज :- उड़ान हौसलों की

व्यक्ति की जब कभी असफलता मिलती है, तो वह विचलित हो उठता है। दिलों में न जाने कितने तूफान ज्वालामुखी बनकर फूटने को आतुर होते हैं...किंतु उन तूफान रूपी ज्वालामुखियों को दिलों में दबाकर रखा भी नहीं जा सकता। 
   "कहते हैं दिलों के जज्बातों को पन्नो पर उतारना,फिर उन पर विचार मंथन करना,हृदय में व्याप्त समस्त ज्वालामुखी रूपी तूफानों का अन्त होता है।" 
  *" जब जज्बात शब्दो में बयां होते हैं तो उनका विश्लेषण जीवन में एक नया आयाम तय करती है "*...
माना कि असफलता से मन व्यथित हो उठता है, हौंसले टूट जाते है किंतु कहीं न कहीं यह भी सत्य है कि असफलता आपको सफलता के हजारों रास्ते दिखाती है... हर सफल व्यक्ति को अगर नजदीकियों से देखा जाए तो उन्होंने न जाने कितने असफलता रूपी पहाड़ों को दरकिनार करते हुए सफलता के उच्चतम शिखर को प्राप्त किया है।
        " कहते है न कि अगर आपने जीवन में कभी असफलता नही देखी तो यह मान लीजिए आपने सही मायने में कभी सफलता नहीं देखी "
जैसा कि मैं पहले भी अपने लेख में कुछ शब्दो को लिख चुका हूं.... कि जिंदगी की इस भीड़ में कही ना कही मैं अपने आप को खो चुका हूं और न जाने मेरे जैसे कितने छात्र होंगे जो अपने आपको इस दुनिया में मानते ही नहीं,यहां किसी के सपने कुचल जाते हैं तो कोई बेवजह उम्मीद छोड़ जाता है। उन पर मानसिक दबाव दिन प्रति दिन बढ़ता जाता है, वह हताश हो जाता है...अगर इंसान के सपने ही न रहें तो इस तुलनात्मक दुनिया में इस भागदौड़ भरी रेस से स्वयं को बाहर कर ही लेता है।
 मैं आज बात कर रहा हूं उन छात्रों की जो अपने घर को छोड़कर एक संन्यासी जैसा जीवन जीने के लिए दूसरे शहर आते हैं...
कहना चाहूंगा उनसे, कि हौसलों की बुनियाद पर न जाने कितने शिखर जीते जाते हैं,तुम अकेले ही काफी हो,असफलता के युद्ध को सफलता के बदलने के लिए ...तो उठो एक बार पुनः अपने हौसलों की उड़ान लेकर और लड़ो इस लड़ाई को जब तक तुम्हे तुम्हारी सफलता का शिखर प्राप्त न हो।
भावनाओ को व्यक्त करना हो तो सदैव शब्द कम पड़ जाते हैं...
ऊपर लिखी समस्त लाइनों को कुछ पंक्तियों में पिरोने की कोशिश की है...
*"जरा शब्दों की सीमाओं को हृदय में व्याप्त भावनाओं की अंतरिम गहराइयों से पढ़िएगा,निश्चित रूप से इसमें निहित पंक्ति का अर्थ समस्त संघर्ष शील व्यक्तियों को अपना अस्तित्व नजर आएगा।।"*

 ना जाने क्या हो गया है मुझे, 
 जाने कहां खो गया हूं मैं,
ना ही कुछ लिखा जा रहा है,
 और न ही कुछ पढ़ा जा रहा।
ना जाने क्या और क्यों सोचता हूं मैं,
  ऐसा लग रहा है जैसे,सब छूट सा रहा है,
ना जाने क्यों मन टूट सा रहा है।
   हूं मैं वहीं खड़ा जहां पहले भी था,
पर तब ऐसा नही लगता था, जैसे अब लग रहा।
  अपनो के बीच होकर भी क्यों मैं,
अकेलेपन में भरा जा रहा हूं,
   ना चाहते हुए भी मैं खामोशियों से घिरा जा रहा हूं।।
ना कुछ बोलने को जी चाहता है,
   ना कहने को मन कहता है।
बस खुद को खुद में ही तलाश करने में,
   खुद गुम सा होता जा रहा हूं मैं।।
मन घबराता है,दिल बेचैन हो जाता है,
  जब खुद की असफलताएं देखता हूं मैं।।
डरता हूं कही स्वयं को कमजोर न समझ बैठूं,
पर कहीं न कहीं कुछ कर गुजरने की हिम्मत भी खो चुका हूं मैं।
हंसना चाहता हूं पर हालात ए जिन्दगी हसने नही दे रही,
 रोना चाहता हूं पर भविष्य में आने वाली जिम्मेदारियां रोने नहीं दे रही।।
मैं सदैव देखता हूं ख्वाब मोहब्बत के,
 पर हकीकत से भी वाकिफ हूं मैं।
कोई नही मेंरा यहां,खुद ही खुद का साथी हूं मैं।।
और चाहे कुछ भी कह लो,
लोगों की सोच से वाकिफ हूं मैं।।
हां, हूं तो अकेला इस असफलता से सफलता की ओर बढ़ते युद्ध में,
पर हां इस युद्ध में अकेला ही काफी हूं मैं।।
                    *निशांत श्रीवास्तव*

अंततः जिद,जुनून और साहस से ही दुर्गम शिखरों को जीता जा सकता है।।
expr:data-identifier='data:post.id'

एक टिप्पणी भेजें

0 टिप्पणियाँ
* Please Don't Spam Here. All the Comments are Reviewed by Admin.

7

6

- हम उम्मीद करते हैं कि यह लेखक की स्व-रचित/लिखित लेख/रचना है। अपना लेख/रचना वेबसाइट पर प्रकाशित होने के लिए व्हाट्सअप से भेजने के लिए यहाँ क्लिक करें। 
कंटेंट लेखक की स्वतंत्र विचार मासिक लेखन प्रतियोगिता में प्रतिभाग करने के लिए यहाँ क्लिक करें।। 


 

2