कोई परिणाम नहीं मिला

    महिला सशक्तिकरण और नारी समानता"

    आलेख
    "महिला सशक्तिकरण और नारी समानता"
    "प्रकृति का रूप है नारी, 
    शक्ति का अवतार है l
    सृजन का सोपान मनोहर, 
    सृष्टि का उपहार है l"

    भारतीय संस्कृति में नारी को नारायणी के रूप में प्रतिष्ठित कर वेदों में भी कहा गया है-
    " यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता"
    वैदिक संस्कृति में ब्रह्मवादिनी ‘घोषा’, लोपामुद्रा, सूर्या, विश्वावारा, अपाला, गार्गी,मैत्रेयी अनुसुइया ऋषिकाओं के नाम विदुषियों में सम्मिलित हैं । परिवारों में माता को पूज्य स्थान दिया गया । नवरात्रि में कन्या पूजन के द्वारा बतलाया जाता है कि महिलाएं सृजन कर्ता होने के कारण सृष्टि का अभिन्न अंग हैं । आज महिला सशक्तिकरण और नारी समानता की चर्चा जोरों पर है । नारी को समानता देने का अर्थ यह कदापि नहीं है कि वह अबला है तो उसे विशेषाधिकार दिये जायें। नारी को तो उसके हिस्से की ज़मी और आसमान चाहिए जिसमें वह भी अपनी भावनाओं, रुचियों को अपने हौसलों से उड़ान दे सके । 
    जब भी कोई दिवस मनाने की बात सामने आती है । उसका तात्पर्य है कि उस क्षेत्र में चिंतन मनन की आवश्यकता है । हमे
    महिला सशक्तिकरण को नहीं बल्कि महिला समानता को बढ़ावा देना है, क्योंकि महिला तो शक्ति का ही रूप है उनके साथ भेदभावपूर्ण व्यवहार, दहेज प्रथा, दुष्कर्म, तेज़ाब फेंकने, भ्रूण हत्या जैसी कलुषित प्रवृत्तियों को हतोसाहित करना है। 
    वर्तमान परिप्रेक्ष्य में हम देखें तो आज महिलाएं प्रत्येक क्षेत्र में अपना परचम लहरा रही हैं । नारी को दोयम दर्जे का समझकर, उसकी शक्तियों को कमतर आंकना केवल घर की देहरी तक ही सीमित रखना उसके साथ अन्याय है यही कारण है कि आज नारियों को और विभिन्न संगठनों को महिला समानता और नारी अधिकारों के लिए आवाज बुलंद करने की आवश्यकता पड़ी । महिलाएं अपने कार्य क्षेत्र और परिवार के बीच कुशलता पूर्वक सामंजस्य स्थापित करती हैं । दोहरे उत्तरदायित्व बखूबी निभाती हैं। जो महिलाएं गृहणी हैं उनके कार्य को भी कामकाजी महिलाओं के समान समझकर महत्त्व देकर 'होम मेकर' का सम्मान दिया जाना चाहिए ताकि वे हीन भावना से ग्रसित न हों । और घर मे दीन हीन की भांति आर्थिक रूप से घर के कमाई करने वाले सदस्यों से ताने न सुनें । 
    अतः मेरे मंतव्य से उसके हौसलों को, रुचियां को, क्षमताओं को उड़ान देकर समाज में मजबूती के साथ पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर देश के विकास में योगदान देना ही महिला समानता का प्रबल पक्ष है । विश्व के वही देश विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में है जहां महिला पुरुष के बीच खाई नहीं है । महिलाओं को समान अधिकार दे कर उनकी क्षमताओं को देश के विकास में उपयोग करके विकसित राष्ट्रों की श्रेणी में स्थापित किया जा सकता है ।
    निष्कर्षतः मेरी लेखनी के उद्गार-
    "शोषण,दमन,प्रवंचना का पग-पग पर प्रतिकार करो l
    बनो प्रबल विद्या बुद्धि में, 
    पुरुषार्थ से प्यार करो l
    करो शौर्य का “दीप” प्रज्ज्वलित नारी से संसार है।"

    उपर्युक्त लेख मेरा मौलिक एवं स्वरचित है ।
    © लेखिका
    डॉ. दीप्ति गौड़ "दीप" 
    शिक्षाविद् एवम् कवयित्री
    ग्वालियर मध्यप्रदेश भारत 
    ( वर्ल्ड रिकॉर्ड पार्टिसिपेंट)
    सर्वांगीण दक्षता हेतू राष्ट्रपति भवन नई दिल्ली की ओर से भारत के भूतपूर्व राष्ट्रपति महामहिम स्व. डॉ. शंकर दयाल शर्मा स्मृति स्वर्ण पदक,विशिष्ट प्रतिभा सम्पन्न शिक्षक के रूप में राज्यपाल अवार्ड से सम्मानित

    एक टिप्पणी भेजें

    Thank You for giving your important feedback & precious time! 😊

    और नया पुराने

    संपर्क फ़ॉर्म