कोई परिणाम नहीं मिला

    जिंदगी से मुझे, गिला ही नहीं।

    जिंदगी से मुझे, गिला ही नहीं।
    जिंदगी से मुझे, गिला ही नहीं।
    के बहाना जीने का, मिला ही नहीं।

    अधूरे ख्वाबों की, दास्तां न पूछो,
    यहां चांद सबको, मिला ही नहीं।

    आज फिर घेरा, तन्हाई ने मुझे,
    और कोई उसको, मिला ही नहीं।

    दर्द ये दिल का, सहना तो पड़ेगा,
    फूल बिना कांटों का, खिला ही नहीं।

    गिरते रहे संभलते रहे, खुद ही हम,
    हाथ थामता कोई, मिला ही नहीं।

    वेवजह निकले हैं, जिस सफर में हम,
    गैर मिले पर अपना, मिला ही नहीं।

    साहिब, फिरते रहे, उल्फत की गलियों में
    पता सुकून ए दिल का, मिला ही नहीं।

                           -सुशी सक्सेना

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