व्यथित मन*

*व्यथित मन*


ये सारा संसार नीरस हो जाता है

जब खुद का फैसला गलत हो जाता है

तो मेरा मन उदास हो जाता है

धैर्य टूट जाता है

साहस डगमगाने लगता है

फिर लगता है कोई आकर कह दे

अभी कुछ नही हुआ सब ठीक हो जाएगा 

कोई तो हाथ पकड़ ले 

मेरे साथ चले पल दो पल

कह दे बदल जायेगा कल

फिर ये मन क्यों व्यथित हो

कोई तो साथ हो

कोई तो साथ हो

सब अपने अपने में मस्त हैं

अपनी रोजी रोटी में व्यस्त हैं

संपन्न हो सकुशल उनका सब काम

क्यों रखेंगे याद वो मेरा नाम 

किसी के प्रति द्वेष मैं क्यों रखूं

याद भी उनके नाम क्यों रखूं

है मुझे भविष्य की चिंता

मां बाप के सारे अरमान

कैसे भूल जाऊं मैं उनके

त्याग तपस्या और बलिदान

मन मेरा ये व्यथित हो जाता है

ये सारा संसार नीरस हो जाता है 

              *वरुण तिवारी मुसाफिरखाना*
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