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    अशांति


     अभी अभी-
    वादी में उड़े हैं बारूद
    हवा सहमी सहमी सी 
    दहशत की गंध फैल
     गई है वातावरण में

    अभी अभी- 
    वर्दीधारी और आतंकियों 
    की मुठभेड़ में शहीद हो 
    गया है एक बेकसूर शख़्स

    खून से लथपथ  
    सड़क के बीचों पड़ी 
    उसकी लाश से लिपटकर 
    रो रहा है एक मासूम बच्चा- 

    बच्चा-जो नहीं जानता ये सब 
    क्या और क्यों हो रहा है वादी में
    मार डाला गया है, उसके बाबा को क्यों 

    उसे नहीं पता-
    वादी में इतना 
    खून खराबा क्यों होता है

    क्यों हर सुबह गोलियों की आवाजें, 
    बम धमाके सुनकर जगते हैं लोग

    क्यों शाम ढलते ही घरों में दुबक जाते हैं 
    वादी के लोग

    कौन हैं जो लड़ रहे हैं बरसों से, 
    रक्तरंजित कर रहे हैं
     इस पवित्र धरती के स्वर्ग को

    किसके हक की लड़ाई लड़ रहे 
    आख़िर किसके हमदर्द हैं वो
    क्या अवाम का भला चाहते हैं

    अगर हां तो फिर क्यों खेली 
    जा रही है अवाम के खून की होलियां

    क्यों किए जा रहे हैं वे बेदखल
     जिंदगी से
      क्यों उजाड़ रहे हैं उन्हें,

     क्यों देने को विवश हैं वे 
    कुर्बानियां वादी में
    क्यों मासूम पीढ़ियों के भविष्य
      बिगाड़ने पे तुले हैं

    इस वातावरण का निर्माण 
    करके कैसा भविष्य देना चाहते हैं 
    ये वादी में लड़ने वाले
    क्या जन्नत में
     खून की नदियां बहती हैं.....???

    - मोहम्मद मुमताज हसन
    रिकाबगंज, पोस्ट टिकारी ज़िला गया ( बिहार)

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