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    आत्मज्ञानी का यशगान

    विश्व रंगमंच पर, मानव जीवन खेल समान
    सुख दुख एक दिखावा, इसको लो पहचान

    अच्छा हो या बुरा समय, आकर चला जाता
    मन में चिंता ढ़ोने वाला, महामूर्ख कहलाता

    आत्मज्ञानी और धैर्यवान, रहते सदा प्रसन्न
    द्वंद्व भरे प्रश्न ना होते, उनके मन में उत्पन्न

    दुख निन्दा रोग वियोग, हानि या तिरस्कार
    क्षणिक स्वप्न समान, करते उनको स्वीकार

    देहिक प्राप्तियों से, स्वयं को नहीं चिपकाते
    निर्लिप्त रहकर इनसे, सदाचार ही अपनाते

    भोगों में तृप्ति नहीं, उन्हें सदा रहता ये ज्ञान
    ऐश्वर्य और प्रतिष्ठा में, ना भूलते आत्मभान

    केवल आत्म स्मृति ही, उनका मूल स्वभाव
    नजर ना आता उनके, संकल्पों में बिखराव

    उनका अंतःकरण रहता, पापों से स्पर्शमुक्त
    सबके प्रति दयालु, स्वभाव से सरलतायुक्त

    इच्छाओं से न्यारेपन का, बल उनमें समाया
    सदा स्वच्छ और पवित्र, रहती उनकी काया

    समता भाव से युक्त, रहते हमेशा आत्मलीन
    काल कभी ना पाता, उनके जीवन को छीन

    महिमा उनकी अनंत, कितना करूं यशगान
    केवल आत्मज्ञानी ही, जगत में सबसे महान

    ऊँ शान्ति

    मुकेश कुमार मोदी
    बीकानेर राजस्थान

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