गागर में सागर भरे, दोहा छंद गहीर।
दो पद की यह सर्जना, छंद क्षेत्र रणवीर।।-1
तेरह ग्यारह गिन लिखें, अनुपम दोहा छंद।
कुल मात्रा चौबीस से, उपजेगा आनंद।।-2
ग्यारहवीं मात्रा अमित, रखें सदा लघु भार।
दोष रहित होगा सृजन, दोहा फिर दमदार।।-3
शब्द चयन आधार है, कल संयोजन प्राण।
विषम विषम सम साधिए, होगा तब कल्याण।।-4
चार चरण दो पद सहित, दोहा अति अभिराम।
एक तीन दो चार का, यहाँ विषम सम नाम।।-5
आदि जगण मत राखिए, करता यह व्यवधान।
उचित जगह यति गति लगे, रहे यही बस ध्यान।।-6
विषम चरण लघु गुरु अमित, रखें चरण के अंत।
मात्राओं के ज्ञान से, भाव सृजन सुखवंत।।-7
चरण अंत सम का रखें, गुरु अरु लघु अनिवार्य।
मूल मंत्र दोहा अमित, विधि सम्मत स्वीकार्य।।-8
दोहा रचना है सहज, इसका सरल विधान।
अमित सतत अभ्यास ही, देता अतुलित मान।।-9
रखिए रचना में सदा, उत्तम उचित तुकांत।
मात्रा गणना हो सही, इति दोहा सूत्रांत।।-10
सर्जक- *कन्हैया साहू 'अमित'*
शिक्षक- भाटापारा छत्तीसगढ़
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