सरस्वती वंदना
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मां शारदे वीणापाणी, करूं मैं
प्रार्थना तुझसे।
करना नाश अज्ञान तिमिर और जो त्रुटि हो मुझसे।
देना सुंदर वाणी सबको और
अमृत मंत्र सुंदर।
भारत में चहुं ओर दिखे हर बाल-बाला साक्षर।
हर उर से तम काट सुंदर स्वर भरना।
गदगद हर्षित करनेवाली सुंदर तान छेड़ना।
नूतन गति मति नूतन ताल छंद अलंकार सुशोभित।
नूतन नभ में उड़ते विहग से हो नूतन रव झंकृत।
दे सकूं जग को स्वतंत्र सोच-विचार अधिकार।
हे मां तमहारिणी पूर्ण करो मम "दुर्लभ" उद्गार।
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स्वरचित मौलिक अप्रकाशित रचना (दिनांक--28/04/2023)
द्वारा---
मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
( शिक्षक सह साहित्यकार)
सिवान, बिहार
मोबाइल नंबर 9576 5350 97