आधुनिक युग के सर्वश्रेष्ठ वीर रस के कवि,हिंदी के प्रमुख लेखक कवि व निबंधकार और हम सब के आदर्श राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर को उनकी पुण्य तिथि पर सादर नमन करते हैं🙏🙏
साहित्य जगत का था एक तारा,इस दिन धरती पे आया।
पा कर के दिनकर सा लाल, सारा साहित्य जगत हर्षाया।।
धन्य हुआ यह देश अपना, और वो धन्य सिमरिया गांव,
वीर ओज़ की पतवारों से, स्वचंद चली साहित्य की नाव।
गुलामी की लहरों को जिसने,तब अपनी वाणी से हराया,
पाकर के......................................................।।
वाणी ऐसी जिसको सुनके,कुम्हलता कुसुम भी खिल जाए
जोश भरते हैं रोम कूपों में,व जीवन मुर्दे को भी मिल जाए
वाणी से हीं इस दिवेश ने,था आजादी का अलख जगाया
पाकर के.........................................................
कौन भूल सकता है भला, उनका कुरुक्षेत्र व वो हुंकार।
युवाओं में था जोश भरा,और सिखाया करना प्रतिकार।।
दिनकर ने अपने तेज प्रताप से, था गोरों को तब भरमाया
पाकर के.......................................................।
रश्मिरथी जहां वीरता की,हमें अनुपम कथा बतलाती है,
रसवंती व उर्वशी हमें, वेदना संग प्रेम भाव दिखलाती है।
छायावाद संग वीरता और , हमने श्रृंगार का रस भी पाया,
पाकर के......................................................।।
एैसे कवि के सम्मान में आज, मैं नतमस्तक हो जाता हूंँ,
श्रद्धा भाव से करता मैं नमन, व शीश अपना झुकाता हूंँ।
रचनाओं ने इनकी देशभक्ति का, हमें हरदम पाठ पढ़ाया,
पाकर के......................................................।।
सौगंध मुझे इस मिट्टी की, मैं ऐसा हीं कुछ कर जाऊंगा,
स्वर्णिम अक्षरों में नाम अपना,इतिहास में लिखवाऊंगा।
कलम की ताकत से हर पापी,अब खून के अंशु रोएगा
जर्रे जर्रे में इंकलाब व भारत मां के, नारे मैं लगवाऊंगा।।
मैं दिनकर का ओज़ रूप,मेरा कलम नहीं तलवार है,
वतन के गद्दारों के खातिर, यह मृत्यु रूप अवतार है।
मेरे रग में बसा ये लहू यहां का,अंतर्मन से खौल रहा,
वतन के दुश्मनों के खातिर, ये काव्य नहीं ललकार है।।
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✍️राहुल सिंह ओज
मुंबई
मूल निवास - छपरा ( बिहार)