जल और विज्ञान


    भारत के अधिकांश भागों में मुख्यतया गांवों में जल की भीषण समस्या उत्पन्न हो जाती है। क्योंकि गर्मियों के मौसम में पृथ्वी के जलस्तर में काफी गिरावट आ जाती है। जल की इन समस्याओं से बचने के लिए लोगों द्वारा बहुत सारे प्रयास भी किए जाते हैं। जल हमारे जीवन की सबसे महत्वपूर्ण आवश्यकता है। जल से ही जीवन है, जो जल नहीं तो कल नहीं। जल की भौतिक आवश्यकताओं से परे इसका विज्ञान में भी बहुत अधिक महत्व है।

     जल रासायनिक तत्वों हाइड्रोजन और ऑक्सीजन ( H2O ) से मिलकर बना एक ऐसा पदार्थ है जो गैस, द्रव और ठोस तीनों अवस्थाओं में पाया जाता है। विज्ञान की जिस शाखा में जल के रूप परिवर्तन, आदान प्रदान, स्रोत सरिता, विलीनता, वाष्पता, हिमपात, उतार चढ़ाव व मापन आदि का ज्ञान प्राप्त होता है उसे जलविज्ञान कहते हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार धरती पर जल की खोज लगभग 400 करोड़ साल पहले हुई होगी। 
       जल हमारे शरीर के तापमान को नियंत्रित करने के साथ साथ आंखों, नाक और मुंह के ऊतकों को नम करता है। पोषक तत्वों और आक्सीजन को कोशिकाओं तक पहुंचाने का काम करता है। जल को जीवन कहा गया है क्योंकि हमारा शरीर ही 70% जल का बना हुआ है। उचित मात्रा में जल पीना हमारे शरीर के लिए बहुत जरूरी है। यहां तक की हमारी त्वचा, दिल, रक्त आदि में भी जल की मात्रा बहुत अधिक होती है। जल के बिना मनुष्य 5 दिन से अधिक जिंदा नहीं रह सकता। इसलिए जल के बिना जीवन असंभव है।
   अधिक जनसंख्या, जल संसाधनों का अधिक उपयोग, पर्यावरण को नुक्सान और जल प्रबंधन की खराब व्यवस्था के चलते भारत के अधिकांश भागों में जल संकट की विपदा आती है। इस संकट से बचने के लिए ज्यादा से ज्यादा पेड़ों को लगाकर पृथ्वी का सरंक्षण करना चाहिए। ताकि वायुमंडल में नमी होने पर बादल आकर्षित हो कर बर्षा करें। जल संरक्षण करके भी इस सकंट से बचा जा सकता है। जैसे संचयन, कुशल सिंचाई तकनीक का इस्तेमाल, वन रोपण आदि के कई तरीकों को अपनाकर जल को संरक्षित किया जा सकता है।

                     -सुशी सक्सेना इंदौर मध्यप्रदेश
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