राम नवमी विशेष - विश्व संभ्रांत समाज की परिकल्पना


विश्व संभ्रांत समाज की परिकल्पना

     सनातनी संस्कृति सदा से ही "आत्मवत सर्व भूतेषु" तथा "वसुधैव कुटुंबकम्" का संदेश देती रही है,

     "सर्वे भवन्तु सुखिनः सर्वे संतु निरामया।
     सर्वे भद्राणि पश्यंतु, मा कश्चिद दुख भाग भवेत्।।"

     उसकी सदा से अवधारणा रही है।
    इस अवधारणा को धरातल में उतारने हेतु कई संगठन अपने _अपने स्तर से लगातार प्रयास कर रहे हैं,इस दिशा में "अखिल विश्व गायत्री परिवार"एवं "ब्रह्मा कुमारी, ईश्वरी विश्वविद्यालय" ने उल्लेखनीय कार्य किया है। अखिल विश्व गायत्री परिवार की स्थापना  वेदमूर्ति, तपोनिष्ठ पंडित  श्री राम शर्मा आचार्य जी ने सन 1926 में अखंड ज्योति प्रज्वलित करके की। उन्होंने __

     हम बदलेंगे _युग बदलेगा।
     हम सुधरेंगे _युग सुधरेगा।
     मानव मात्र __एक समान।
     नर और नारी __एक समान।
     जाति वंश सब __एक समान।
     विश्व का __कल्याण हो।
     प्राणियों में _सद्भावना हो।
     सारी वसुधा __एक परिवार।

         _जैसे उदघोषों के साथ 100 शूत्रीय कार्यक्रमों के माध्यम से समूचे विश्व में सुख, शांति, की स्थापना हेतु संदेश दिया है । वर्तमान में पूरे विश्व के 90 देशों में लगभग 24 करोड़ गायत्री परिवार के सदस्य इस कार्य में तन, मन, धन से लगे हुए हैं। उन्होंने इस अभियान को "युग निर्माण" नाम दिया और इसका उद्देश्य "सतयुग की वापसी"बताया।
     ब्रह्मा कुमारी ईश्वरी विश्वविद्यालय की स्थापना दादा लेखराज ने सन 1930 में की ।
उन्होंने__
          आत्मा के सात गुणों_
                 प्रेम
                सुख
                शांति
                ज्ञान
               आनंद
                शक्ति
               पवित्रता

  _को पुनः प्राप्त करने का दर्शन प्रस्तुत किया, जिनके प्राप्त होते ही समूचे विश्व में सतयुग का वातावरण बन जायेगा।आज पूरे विश्व के 137 देशों के लगभग 8500 केंद्रों के माध्यम से करोड़ो कार्यकर्ता "सतयुग की वापसी"करने हेतु प्रयास रत हैं।

    इसी परिप्रेक्ष्य में  विश्व संभ्रांत समाज की स्थापना सन 2010 में विश्व रत्न पंडित शीतला प्रसाद त्रिपाठी जी ने की,जो अपने 40 विंदुओ के माध्यम से इसी परिकल्पना को लेकर चल रहा है कि दुनिया में केवल एक ही जाति है "इंसान"और एक ही धर्म है "इंसानियत"इसे इस तरह भी कह सकते हैं कि _

       केवल एक जाति है मानव,
       मानवता ही एक धर्म है।
       जियो और जीने दो सबको,
       यही धर्म का मूल मर्म है।।

      जब हम विश्व संभ्रांत समाज के परिकल्पना की बात करते हैं तो "राम राज्य"की विशेषताएं सहज ही दिखाई देने लगती हैं। इतिहास में अभी तक की सारी शासन बयवस्थाओ  मे से "राम राज्य "की विशेषताएं सर्व श्रेष्ठ दृष्टि गोचर होती हैं।
      राम राज्य की विशेषताएं बताते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी रामचरित मानस के उत्तर कांड में लिखते हैं कि__

 राम राज्य बैठे त्रयलोका।
हर्षित भए गए सब शोका।।
बयर न कर काहू सन कोई।
राम प्रताप विषमता खोई।।
दैहिक, दैविक, भौतिक, तापा ।
राम राज्य नहिं काहुहि ब्यापा।।
सब नर करहि परस्पर प्रीती।
चलहि स्वधर्म निरत श्रुति नीती।।
नहि दरिद्र कोउ दुखी न दीना।
नहि कोउ अबुध न लच्छन हीना।।
सब गुणज्ञ पंडित सब ज्ञानी।
सब कृतज्ञ नहि कपट सयानी।।
सब उदार सब पर उपकारी।
विप्र चरण सेवक नर नारी।।
एक नारि ब्रत रत सब झारी।
ते मन, बच, क्रम पति हितकारी।।
फूलहि, फरहि सदा तरु कानन।
रहहि एक संग गज, पंचानन।।
खग मृग सहज बयरू विसराई।
सबन परस्पर प्रीत बढ़ाई।।

     उक्त विशेषताओं को देखते हुए यह निर्विवाद रूप से कहा जा सकता है कि _विश्व संभ्रांत समाज जिस युग की बात कर रहा है वह सभी विशेषताएं राम राज्य में थीं, और यही सब विशेषताएं सतयुग में थीं, इसीलिए गोस्वामी तुलसीदास जी ने लिखा है कि _

 ससि सम्पन्न सदा रह धरनी।
त्रेता भई सतयुग कै करनी।।

      इस प्रकार हम कह सकते है कि, विश्व संभ्रांत समाज की परिकल्पना राम राज्य की स्थापना या सतयुग की वापसी ही है। इसे 
        "विश्व संभ्रांत समाज युग 
           ***************   
           _सतयुग की वापसी "
         ****""*****""""""****

          कहा जाना उचित प्रतीत होता है।
      ईश्वर से प्रार्थना है कि शीघ्र ही विश्व संभ्रांत समाज की परिकल्पना धरातल मे दिखाई दे, ताकि पूरी दुनिया में राम राज्य की पुनर्स्थापना हो सके।


डा शिव शरण श्रीवास्तव "अमल "
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