मिल जाए अगर कोई आलिम तो मैं एक बात पूछ लूं ,गमों को पीने से भी क्या रोजे टूट जाया करते है

रमजान का पाक महीना कहीं ना कहीं किसी के लिए ग़म भरी वर्षांत कर रहा है तो किसी के लिए खुदा की इबादत के लिए हमराह बना हुआ है!मालिक के कायनात में अकस्मात कुछ नहीं होता बल्कि कर्म के मर्म का लेखा जोखा समय समय पर फलीभूत होता है! जो जैसा करता है वैसा भरता है! कोई रोता है कोई हंसता है!उपर वाले के निजाम में सभी को बराबर का इन्तजाम किया गया है! शहंशाह को भी दो गज जमीन नसीब होती है तो गरीब को भी उतनी ही नसीब होती!मगर मगरूर मानव इस मतलब परस्त दुनियां में अकूत धन सम्पदा के लिए जीवन के अनमोल लम्हों मे जार कर्म कर तन्हाई के आलम में गुजार देते हैं।जिनके लिए सब कुछ करते हैं वो भी साथ नहीं होते हैं! इस पाक महीने में नापाक कर्म करने वाला माफिया डान अतीक अन्सारी की वर्षों पहले गिरफ्तारी के बाद अदालतने आजीवन भर जेल में रहने का कर दिया फरमान जारी! यह तो महज एक गुनाह की सजा है अभी तो बहुत लम्बी फेहरिस्त बे गुनाहों पर ज़ुल्म ढाने की है?।न जाने कितने घराने इनके जुल्मों सितम से सिसक रहे हैं! कितने केअरमानों का कत्लेयाम सरेआम कर दिया! सारे समाज में दहशत भर दिया!कल अदालत में सजा सुनाए जाने के बाद आसमान के तरफ डबडबाई नजरों से देखते सिसकते वहीं शख्स बोल रहा था या अल्लाह रहम कर मैं बे गुनाह हूं! एक साथ वर्षों बाद मिले दोनों भाई तन्हाई को याद कर सिसक पड़े!मालिक के दरबार में बार बार के गुनाहों की लम्बी फेहरिस्त से बनी किताब का नाम ही सजाए मौत लिखा जा चुका है!सच कहा गया है सब दिन जात न एक समाना! वक्त कब बदल जाए पता नहीं! पुरानी कहावत है सौ हत्या बाघ भी जिन्दा नहीं बचता! गरीबों ,मजलूमों ,बेसहारों, तथा बेगुनाहों के उपर किए गये जुल्मों सितम का हिसाब इस पाक रमजान के मुक़द्दस महीने में मालिक की रज़ा से अदालत ने जीवन भर चारदीवारी के बीच बन्द अपनों से दूर सिसक सिसक कर जीने की सज़ा सुना ही दिया।न सियासतदार काम आए न दौलत काम आई! न शोहरत काम आई! हर तरफ केवल जग हंसाई!जो कभी हम पर जान दिया करते थे! जो हम कहते थे वहीं मान लिया करते थे! आज पास से अनजान बनकर गुजर गये जो हमें दूर से पहचान लिया करते थे! यही सोचते प्रयाग राज के जुर्म का पहलवान टूटे दिल से कानून के रखवालों की भीड़ में भाई से बिछडते गुम हो गया!वक्त की बात है साहब! परवाह करने वाला मित्र' दर्द समझने वाला पड़ोसी,इज्जत देने वाला रिश्तेदार प्यार करने वाला परिवार विरले को ही नसीब होते है! मगर यह नजारा डान के स्वाभिमान को सुरक्षित करने में लगे उनके आत्मीय लोगों के बीच देखा गया। खुद की परवाह किए बगैर साबरमती जेल से प्रयागराज तक पुलिस काफिले के पीछे चलता कुनबा चर्चा में रहा।बहरहाल सियासत का बाजीगर हार गया! अपराध के शतरंजी खेल का खिलाडी अनाड़ी मतलबी सियासतदारो पर भरोशा कर हमेशा के लिए कानून के सीखचों में कैद हो गया! हालात इस कदर गमजदा है कि पूरा परिवार मिट्टी में मिल गया! न बादशाही महल बचा! न परिवार का रसूख बचा! मौत लगातार पीछा कर रही है! कभी भी कुछ भी हो सकता है।बिहारी डान के तरह ही माफिया डान अतीक का भी जेल के भीतर से ही कब्रिस्तान तक का सफर अब पूरा होगा!प्रयाग राज की पावन धरती पर दहशत की बहती जहरीली हवा का रुख मंगलवार से ही बदल गया!भाई जान के समर्थन में कशीदे पढ़ने वालों की जबान पर ताला लग गया!पत्रकारिता के वे पंडित जिनके लिए फंडिंग डान का परिवार करता था जो लगातार चिल्ला रहे थे गाड़ी पलट जायेगी!आज हासिऐ पर नजर आ रहे हैं?।बेशर्मी की हद को पार कर ज़बान को तेवर देने वाले जब प्रकृति के कहर से किसान मर रहा था सारी जमा-पूंजी बर्बाद हो गयी, इन चाटुकार पत्रकारों की टीबी एक बार भी इस समाचार को प्रसारित नही कर सकी!जब देश का दूर्दान्त अपराधी समाज के लिए जो अभिशाप है कानून के पहरे दारो के कडे संरक्षण में अदालत लाया जा रहा था पत्रकारों की फौज पल पल की अपडेट प्रसारित कर रहा था! हाफ रहे थे! बेचारे कदम कदम पर कानून का पैमाना नाप रहे थे!? मगर अदालती फरमान के बाद उनकी चैनल में सियापा है! घरों पर गमों की वर्षांत हो रही है; सजा अतीक को हुई मातम चाटुकार पत्रकार मना रहे हैं? खून का आंसू रोता किसान परेशान हैं अपनी बर्बादी पर! मगर चाटुकार मिडिया के दलाल मालामाल होने के चक्कर मे अतीक की गाड़ी का गाय से हुऐ टक्कर का ब्रेकिंग चलाने में फक्र समझते है। कुछ तो शर्म करो जिस अन्नदाता के बदौलत सड़कों पर हांफते हो टीआरपी बटोरते हो उनके दर्द को भी अगर इतनी ही शिद्दत से दिखाते तो शायद जन जन के चहेता बनकर मशहूर हो जाते हैं?।आज भी सबसे अधिक टीबी गांवों में देखी जाती है! लेकिन सबसे अधिक उपेक्षा चैनलों पर ग्रामीण परिवेश का ही होता है।खैर जैसी करनी वैसी भरनी।अतीक हो मुख्तार हो या कोई अन्य समय किसी को भी माफ नहीं करता! जो वक्त के साथ चला उसका भला हो गया! जो चलता विपरीत वह बन गया अतीक!! इन्सानियत की राह पर चलकर जीवन का सफर जिसने पूरा कर लिया मालिक के दरबार से जीवन मरण की यात्रा से मुक्ती पा लिया‌! सबका मालिक एक 🕉️ साईराम🙏🏿🙏🏿
*सम्पादकीय*
✍🏾जगदीश सिंह सम्पादक✍🏾 
*मिल जाए अगर कोई आलिम तो मैं एक बात पूछ लूं*
*गमों को पीने से भी क्या रोजे टूट जाया करते है*।
रमजान का पाक महीना कहीं ना कहीं किसी के लिए ग़म भरी वर्षांत कर रहा है तो किसी के लिए खुदा की इबादत के लिए हमराह बना हुआ है!मालिक के कायनात में अकस्मात कुछ नहीं होता बल्कि कर्म के मर्म का लेखा जोखा समय समय पर फलीभूत होता है! जो जैसा करता है वैसा भरता है! कोई रोता है कोई हंसता है!उपर वाले के निजाम में सभी को बराबर का इन्तजाम किया गया है! शहंशाह को भी दो गज जमीन नसीब होती है तो गरीब को भी उतनी ही नसीब होती!मगर मगरूर मानव इस मतलब परस्त दुनियां में अकूत धन सम्पदा के लिए जीवन के अनमोल लम्हों मे जार कर्म कर तन्हाई के आलम में गुजार देते हैं।जिनके लिए सब कुछ करते हैं वो भी साथ नहीं होते हैं! इस पाक महीने में नापाक कर्म करने वाला माफिया डान अतीक अन्सारी की वर्षों पहले गिरफ्तारी के बाद अदालतने आजीवन भर जेल में रहने का कर दिया फरमान जारी! यह तो महज एक गुनाह की सजा है अभी तो बहुत लम्बी फेहरिस्त बे गुनाहों पर ज़ुल्म ढाने की है?।न जाने कितने घराने इनके जुल्मों सितम से सिसक रहे हैं! कितने केअरमानों का कत्लेयाम सरेआम कर दिया! सारे समाज में दहशत भर दिया!कल अदालत में सजा सुनाए जाने के बाद आसमान के तरफ डबडबाई नजरों से देखते सिसकते वहीं शख्स बोल रहा था या अल्लाह रहम कर मैं बे गुनाह हूं! एक साथ वर्षों बाद मिले दोनों भाई तन्हाई को याद कर सिसक पड़े!मालिक के दरबार में बार बार के गुनाहों की लम्बी फेहरिस्त से बनी किताब का नाम ही सजाए मौत लिखा जा चुका है!सच कहा गया है सब दिन जात न एक समाना! वक्त कब बदल जाए पता नहीं! पुरानी कहावत है सौ हत्या बाघ भी जिन्दा नहीं बचता! गरीबों ,मजलूमों ,बेसहारों, तथा बेगुनाहों के उपर किए गये जुल्मों सितम का हिसाब इस पाक रमजान के मुक़द्दस महीने में  मालिक की रज़ा से अदालत ने जीवन भर चारदीवारी के बीच बन्द अपनों से दूर सिसक सिसक कर जीने की सज़ा सुना ही दिया।न सियासतदार काम आए न दौलत काम आई! न शोहरत काम आई! हर तरफ केवल जग हंसाई!जो कभी हम पर जान दिया करते थे! जो हम कहते थे वहीं मान लिया करते थे! आज पास से अनजान बनकर गुजर गये जो हमें दूर से पहचान लिया करते थे! यही सोचते प्रयाग राज के जुर्म का पहलवान टूटे दिल से कानून के रखवालों की भीड़ में भाई से बिछडते गुम हो गया!वक्त की बात है साहब! परवाह करने वाला मित्र' दर्द समझने वाला पड़ोसी,इज्जत देने वाला रिश्तेदार प्यार करने वाला परिवार विरले को ही नसीब होते है! मगर यह नजारा डान के स्वाभिमान को सुरक्षित करने में लगे उनके आत्मीय लोगों के बीच देखा गया। खुद की परवाह किए बगैर साबरमती जेल से प्रयागराज तक पुलिस काफिले के पीछे चलता कुनबा चर्चा में रहा।बहरहाल सियासत का बाजीगर हार गया! अपराध के शतरंजी खेल का खिलाडी अनाड़ी मतलबी  सियासतदारो पर भरोशा कर हमेशा के लिए कानून के सीखचों में कैद हो गया! हालात इस कदर गमजदा है कि पूरा परिवार मिट्टी में मिल गया! न बादशाही महल बचा! न परिवार का रसूख बचा! मौत लगातार पीछा कर रही है! कभी भी कुछ भी हो सकता है।बिहारी डान के तरह ही माफिया डान अतीक का भी जेल के भीतर से ही कब्रिस्तान तक का सफर अब पूरा होगा!प्रयाग राज की पावन धरती पर दहशत की बहती जहरीली हवा का रुख मंगलवार से ही बदल गया!भाई जान के समर्थन में कशीदे पढ़ने वालों की जबान पर ताला लग गया!पत्रकारिता के वे पंडित जिनके लिए फंडिंग डान का परिवार करता था जो लगातार चिल्ला रहे थे गाड़ी पलट जायेगी!आज हासिऐ पर नजर आ रहे हैं?।बेशर्मी की हद को पार कर ज़बान को तेवर देने वाले जब प्रकृति के कहर से किसान मर रहा था सारी जमा-पूंजी बर्बाद हो गयी, इन चाटुकार पत्रकारों की टीबी एक बार भी इस समाचार को प्रसारित नही कर सकी!जब देश का दूर्दान्त अपराधी समाज के लिए जो अभिशाप है कानून के पहरे दारो के कडे संरक्षण में अदालत लाया जा रहा था पत्रकारों की फौज पल पल की अपडेट प्रसारित कर रहा था! हाफ रहे थे! बेचारे कदम कदम पर कानून का पैमाना नाप रहे थे!? मगर अदालती फरमान के बाद उनकी चैनल में सियापा है! घरों पर गमों की वर्षांत हो रही है; सजा अतीक को हुई मातम चाटुकार पत्रकार मना रहे हैं? खून का आंसू रोता किसान परेशान हैं अपनी बर्बादी पर! मगर चाटुकार मिडिया के दलाल मालामाल होने के चक्कर मे अतीक की गाड़ी का गाय से हुऐ टक्कर का ब्रेकिंग चलाने में फक्र समझते है। कुछ तो शर्म करो जिस अन्नदाता के बदौलत सड़कों पर हांफते हो टीआरपी बटोरते हो उनके दर्द को भी अगर इतनी ही शिद्दत से दिखाते तो शायद जन जन के चहेता बनकर मशहूर हो जाते हैं?।आज भी सबसे अधिक टीबी गांवों में देखी जाती है! लेकिन सबसे अधिक उपेक्षा चैनलों पर ग्रामीण परिवेश का ही होता है।खैर जैसी करनी वैसी भरनी।अतीक हो मुख्तार हो या कोई अन्य समय किसी को भी माफ नहीं करता! जो वक्त के साथ चला उसका भला हो गया! जो चलता विपरीत वह बन गया अतीक!! इन्सानियत की राह पर चलकर जीवन का सफर जिसने पूरा कर लिया मालिक के दरबार से जीवन मरण की यात्रा से मुक्ती पा लिया‌! सबका मालिक एक 🕉️ साईराम🙏🏿🙏🏿

जगदीश सिंह सम्पादक राष्टीय हिन्दी समाचार पत्र मऊ क्रान्ति
राष्ट्रीय अध्यक्ष राष्ट्रीय पत्रकार संघ भारत 
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