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    तुम लड़ सकती हो

    तुम लड़ सकती हो, तुम लड़ सकती हो उन सभी लोगों से...जो तुम्हें कमजोर बता रहे हैं, तुम लड़ सकती हो, उन लोगों से...जो कहते हैं कि तुम्हें बोलना नहीं आता! तुम लड़ सकती हो उन लोगों से जो कहते हैं कि तुम कुछ नहीं कर पाओगी ।
    तुम लगती हो उनसे जिंहोंने बार-बार तुम्हें धोखा दिया है ,
    तुम्हें लड़ना होगा, ख्यालों से जिन के डर से तुमने अपने अंदर ही अंदर खोखला बना दिया है ,
    तुम्हें लड़ना होगा, लोगों की सोच से ,उनकी बातों से, उनकी बेकार के तर्क वितर्क ,बेकार के विचारों से, 
    हाथ पर हाथ धरे बैठने से अब कुछ नहीं होगा, 
    अगर आज तुम चुप रह गई...तो सच में तुम आगे अबला कहीं जाओगे ,
    भविष्य में जब तुम्हारी बातें की जाएंगी, 
    तब तुम्हें एहसास होगा कि तुम्हारी एक आवाज पूरी दुनिया की पहचान बन चुकी है ।
      न ही तुम कमजोर हो ना ही तुम्हें कमजोर रहने की जरूरत है ,
    अगर तुम चाहो तो बदल सकती हो और अगर तुम चाहो तो नया इतिहास रच सकती हो, 
    तुम्हें लड़ने के लिए हथियारों की जरूरत नहीं है। तुम्हारे हाथों में जो चूड़ियां है वही तुम्हारा हथियार है। 
     अगर तुम्हें जरूरत है तो अपने अंदर के डर को बाहर निकाल देने कि ,जिन हाथों से तुम खाना बनाते हो ना...उन हाथों में ताकत है कईयों का मुंह तोड़ देने की !जो तुम्हारे बारे में गलत बात करते हैं ,वो आंखें जो तुम्हारी और गलत नजर से देख रही है, 
    तुम्हारे हाथों में ताकत है ,उन आंखों से उनकी नो रोशनी रोशनी छीन लेने की ।
    तुम्हारी और गलत इरादे जो पैर बढ़ रहे हैं ,
    तुम मे ताकत है उन पैरों को जड़ से उखाड़ देने की। 
    मैं यह नहीं कहती कि तुम तलवार उठाओ,
    मैं यह भी नहीं कहती कि तुम बंदूके चलाओ, बस मैं तुम्हारे तुम्हें याद दिलाना चाहती हूं कि तुम्हारे अंदर भी एक स्वाभिमान है ,मैं तुम्हें बताना चाहती हूं कि तुम्हारे भीतर जो साहस पनप रहा है, तुम्हारी भूल है उसको भीतर छुपा लेने की, तुम्हारी तो एक आवाज ही क�तुम्हारी तो एक आवाज ही काफी है लोगों को उनकी औकात याद दिलाने के लिए ,अभी भी देर नहीं हुई है ।
    तुम चाहो तो इस दुनिया को अपनी ताकत का एहसास करा सकती हो ,
    तुम तुम हो तुम्हें किसी और तुझे कि नाम की जरूरत नहीं ,
    तुम अपनी पहचान खुद बना सकती हो ,अभी भी समय है ,तुम लड़ो रूढ़ीवादी नीतियों से...जिन्होंने तुम्हें घर के अंदर कर दिया है ,तुम लड़ो अपने आप के लिए ,लड़ो अपने स्वाभिमान के लिए, लड़ो अपने अधिकार के लिए, लड़ो...और लड़ो अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए ,उन सबके लिए तुम के प्रेरणा बन सकती हो ,तुम लड़ो अपनी माँओ के लिए जिन्होंने कभी अपने स्वाभिमान को खुलकर नहीं जिया,
    तुम लड़ो अपनी बहनों के लिए...जिनका सिर्फ घुंघट ही उनकी पहचान बन कर रह गया है ,और खासकर तुम लड़ो अपनी बेटियों के लिए ,जिनकी आँखो मे कुछ सपने आकर टूट जाते है, 
    जो अपने आप को दुनिया के सामने लाना तो चाहती है, मगर डर कर चुप रह जाती है, जिनके अंदर हौसले की कमी तो नहीं...मगर तुम्हारी और देखकर वह चुप रह जाती है, तुम सिर्फ नारी नहीं बल्कि वह शक्ति हो जिसके होने से ही संपूर्ण सृष्टि चलती है।

    कुछ याद आया कि तुम कौन हो ? 
    तुम, तुम हो ! 

                                        *- प्रियांशी पाटीदार*

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