अमरपुत्र माँ भारती के

मुड़ पीछे ले मान हार 
नही था जिनकी आदत में, 
कलम नवीन की चल पड़ी आज 
उन वीरों की शहादत में ||

खेला औरतों की आबरू के संग 
तलवारों पर अंग्रेजों ने बच्चे उछाले, 
ज़र्रा-ज़र्रा था बस आजादी का भूखा 
जु़ल्मो-सितम के वो दिन थे काले ||

गुलामी की कड़ी जजीरों में 
यह देश हमारा कसा हुआ था,
हर तरफ चीख बस खून के आँसू 
दिलों में खौफ बसा हुआ था ||
कितनी गोदें सूनी पड़ गईं
ना जाने कितने घर बर्बाद हुए,
रोकने इस तबाही के मंज़र को 
तब धरती पर पैदा आज़ाद हुए ||

मूहों पर ताव सीने में आग 
आँखों में प्रतिशोध की ज्वाला, 
थर-थर काँपने लगी हुकूमत अंग्रेजी 
कि पड़ गया किस शेर से पाला ||

खुद खा गोली कर आजाद हमें 
वह भारत की सदा ढाल रहेंगे, 
बच्चा-बच्चा ‘जय चन्द्रशेखर' बोलेगा
वह वीरता की सदा मिशाल रहेंगे ||

ले हल्के में हम भारतीयों को 
अंग्रेजों ने जुल्म हर-बार किया,
उनको उनकी औकात दिखते भगत ने 
सीने से गोली पार किया ||

इंकलाब है बुलंद जिनका
नाम अमर पूरे संसार में,
मौत भी जिनको डरा ना पाई 
उतना दम ही कहाँ बंदूक तलवार में ||

देशप्रेम ही जिनकी जिंदगी थी 
इरादों पर अपने सदा संख्त रहे, 
सिर झुके न भले धड़ से अलग हो जाए 
धन्य भी वह फाँसी तख्त रहे ||

Navin Gautam
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