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    A Right To Die?

    ज़िंदगी एक खूबसूरत चीज़ है। हर कोई उसे अपने तरीकेसे जीना चाहता है, जिंदगी जीने के उसके कुछ खुदके उसूल होते है। हर इन्सान को अपनी जिंदगी जीने का हक है। वो हक उसे अपनी जिंदगी एक सम्मान के साथ जीने का हक है।
    अगर हर इन्सान को जीने का हक है तो मरने का हक क्यों नहीं? हाली में इसी विषय को लेकर रेवती के दिग्दर्शन में बनी एक फिल्म आई थी, उसका नाम था "सलाम वेंकी". ये कहानी एक सत्य घटना से प्रेरित हुई है। व्यंकटेश जो मसल्स की बीमारी से झुंझ रहा था, उसके मां ने कोर्ट में इच्छा मृत्यु की पिटिशन दाखल की, लेकिन वो पिटिशन खरिश कर दी थी। कोर्ट ने कहा कि हर इंसान को सिर्फ जीने का अधिकार भारतीय संविधान प्रदान करता है, लेकिन उसे इच्छा मृत्यु का कोई अधिकार नहीं।
    अरुणा शानबाग वर्सेस स्टेट की केस का भी यहीं बात कोर्ट ने रख दी। अरुणा शानबाग जो तकरीबन १६ साल सिर्फ बिस्तर पे थी, उसके लॉयर ने ये पिटिशन फाइल की थी, लेकिन.....
    भारत एक संस्कृति प्रधान देश है, जहां जीने के एक अलग मायने है, जिंदगी को बहुत खूबसूरती से जीने के सलीके है। हमारे देश में अभी तक इस कायदे को मान्यता दी गई नही है, हालाकि कुछ देशोमें ये कायदा है। 
    भारत आबादी में दूसरे स्थान पे है, जहां गरीब लोगों की तादात जादा है, मेडिकेशन की असुविधा, हॉस्पिटल्स के बिल्स, ये और ऐसी अनेक समस्याएं अपने देश में है। भूख, बीमारी और गरीबी एक श्राप जैसे है, इस हालात में, जो लोग बीमारी से झुंझ रहे है, जो लोग बिस्तर पर है, जिनकी जीने की कोई भी उम्मीद नहीं है, उनके लिए ये कानून होना चाहिए, जिनकी जीने की उम्मीद खत्म हो गई है, उनके लिए ये कानून होना चाहिए। जैसे सबको जीने का अधिकार है, और वो भी सम्मान के साथ, वैसे ही इच्छा मृत्यु का भी अधिकार होना चाहिए? और वो भी एक सम्मान के साथ। 
    Sandeep kajale

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