कोई परिणाम नहीं मिला

    छात्र और अनुशासन

    प्रस्तावना - विद्या का विनय से अत्यन्त ही घनिष्ठ सम्बन्ध है। 'विद्या ददाति 
    विनय' के आधार पर विद्या से ही विनय का प्रादुर्भाव होता

    अथवा छात्र और अनुशासन है. किन्तु आज देश का दुर्भाग्य है कि विद्या मन्दिरों 
    में जहाँ बिनयशीलता का साम्राज्य होना चाहिए, वहाँ घोर अनुशासनहीनता अपना 
    दानवी वामन पसारे क्रूरता भरा अट्टहास कर रहा है। चारों ओर उच्छृंखलता का ही 
    बोलबाला है। न अध्यापकों में गुरु की गरिमा है और न छात्रों में शिष्य का शील 
    स्वभाव। अनुशासन के नियन्त्रण से जीवन सुखी और शान्त होता है। बिना अंकुश का 
    हाथी, बिना लगाम का घोड़ा जिस प्रकार भयंकर और विनाशकारी होता है, ठीक उसी 
    प्रकार अनुशासन रहित समाज अत्यन्त ही विनाशकारी होता है। अनुशासन जीवन को गति 
    देता है, उसे सुरक्षित रखता है और जीवन के उद्देश्यों को सार्थक बनाता है। 
    अनुशासन से व्यक्ति में शक्ति और आत्म-विश्वास की भावना का उदय होता है। उसका 
    मनोबल ऊँचा होता है।

    अनुशासन का महत्त्व-मानव जीवन में अनुशासन का बहुत बड़ा महत्त्व है। अनुशासन 
    से तात्पर्य मुख्यतः आत्मानुशासन से ही है। नियन्त्रण तो भय और दबाव से भी 
    किया जा सकता है, किन्तु उसका प्रभाव अस्थायी होता है। भय और दबाव समाप्त हो 
    जाने के पश्चात् पुनः उच्छृंखलता की पूर्व स्थिति आ जाती है, जो अपने लिए, 
    समाज के लिए और सारे विश्व के लिए अत्यन्त ही घातक होती है। अनुशासन अपने 
    सच्चे अर्थों में ही सार्थक होगा, जो स्वेच्छा से ग्राह्य किया गया हो। जीवन 
    के कार्य-क्षेत्र में हमारे लिए अनेक कल्याणकारी नियम बनाये गये। उनका पालन 
    करना हमारे कर्तव्य के अन्दर आता है। उन नियमों का पालन कानून या डण्डे के बल 
    पर सदैव नहीं कराया जा सकता। व्यक्ति को स्वयं अपने को उन नियमों के अन्तर्गत 
    नियन्त्रित करना होगा। यदि समाज के सभी प्राणी पूर्णतः नियन्त्रित और अनुशासित 
    हो जायें तो सर्वत्र सुख और शान्ति का साम्राज्य व्याप्त हो जाय। धरती पर 
    स्वर्ग उतर आये। अनुशासन सभी सुखों की जड़ है। वह कठोरता का ऐसा पाषाणखण्ड है, 
    जिसके नीचे आनन्द का मधुर जल स्रोत छिपा हुआ है।

    विद्यालयों में अनुशासनहीनता और उसके कारण विद्यालयों में व्याप्त 
    अनुशासनहीनता के निम्नलिखित कारण कर रहे
     अभिभावकों द्वारा बालकों की उपेक्षा- आज का अभिभावक 
    अपने बच्चों को विद्यालय की चहारदीवारी के भीतर बन्द करा अपने उत्तरदायित्व से 
    मुक्ति पा लेता है। परिणाम यह होता है कि बालक विद्यालय के घेरे से बाहर आते 
    ही उन्मुक्त वातावरण में अपने स्वच्छ पाता है और अनुशासनहीन हो जाता है।

    (ख) दोषपूर्ण शिक्षा प्रणाली- मैकाले की शिक्षा-प्रणाली आज भी बिना किसी 
    परिवर्तन के स्वतन्त्र भारत में भी ज्यों की त्यों व्यवहार ये साई जा रही है। 
    येन-केन-प्रकारेण छात्र किसी भी प्रकार उत्तीर्ण होकर प्रमाण-पत्र पाने के लिए 
    एड़ी-चोटी का पसीना एक करता है। भले हूँ उसमें योग्यता कुछ न हो, किन्तु 
    प्रमाण-पत्र प्राप्त करके वह अपनी रोजी-रोटी पा सकता है, अतः इसके लिए बेकारी 
    और बेरोजगारी के इस युग में वह नकल करता है, रोकने पर झगड़े के लिए उतारू होता 
    है, छुरे और तमंचे निकालता है। इस प्रकार दोषपूर्ण शिक्षा-प्रणाली के कारण भी 
    छात्रों में अनुशासनहीनता अंकुरित होती है।

    (ग) राजनीतिक दलों का प्रोत्साहन - अपरिपक्व बुद्धि वाले छात्रों को 
    अनुशासनहीन बनाने में राजनीतिक दलों का पूरा-पूरा हाथ है। ये की लोकतान्त्रिक 
    शासन व्यवस्था के प्रशिक्षण के नाम पर विद्यालयों में छात्र-संघों की स्थापना 
    कराते हैं और उन्हीं की आड़ में अपना राजनीतिक सेकते हैं। छात्र इतने भावुक और 
    संवेदनशील होते हैं कि आवेश में आकर बड़े-से-बड़ा अनर्थ कर देने में भी इन्हें 
    कोई हिचक नहीं है।

    (घ) अध्यापकों के प्रति श्रद्धा का अभाव-आज का छात्र अध्यापक को अपना गुरु 
    नहीं सेवक मानता है। गुरु के प्रति जो श्रद्धा होनी चाहिए, वह उसमें नहीं है। 
    इसके पीछे प्रबन्ध समितियों की पारस्परिक कलह, विद्यालयों की बढ़ती हुई 
    संख्या, समाज दूषित वातावरण आदि अनेक कारण हैं। इसके साथ-ही-साथ अध्यापकों की 
    दोष-पूर्ण कार्यक्षमता भी इसमें कम सहायक नहीं है।

    अनुशासनहीनता के निराकरण का प्रयास - विद्यालयों में व्याप्त इस घोर 
    अनुशासनहीनता के निराकरण के लिए उपाय सोचना होगा। छात्रों में असन्तोष को दूर 
    करने के लिए उसके सभी अभावों को करना होगा। भावी जीवन के प्रति उसे आश्वस्त 
    करना होगा। छात्र संघों के वास्तविक उद्देश्य को समझाना होगा। इसके साथ-ही-साथ 
    सरकार ने राजनीतिक दलों से पृथक् रहने के लिए छात्रों पर कठोर कदम उठाये हैं। 
    इस प्रकार छात्रों से अपने कर्तव्य को समझा है और बहुत आशा है कि विद्यालयों 
    में अनुशासनहीनता की समस्या कुछ अंशों तक समाप्त हो जाएगी।

    उपसंहार- इसमें सन्देह नहीं कि छात्रों में असीम शक्ति भरी हुई है। मनुष्य ने 
    झरनों और प्रपातों के जल को अनुशासित करके असीम शक्ति एकत्रित करने में सफलता 
    प्राप्त कर ली है। यदि छात्रों की इस असीम शक्ति को भी अनुशासित करके देश और 
    समाज कल्याण के हाथों में लगाया जाय तो निश्चय ही इससे राष्ट्र का बहुत बड़ा 
    हित होगा।
    आज देश का दुर्भाग्य है कि विद्या मन्दिरों में जहाँ बिनयशीलता का साम्राज्य 
    होना चाहिए, वहाँ घोर अनुशासनहीनता अपना दानवी वामन पसारे क्रूरता भरा अट्टहास 
    कर रहा है। चारों ओर उच्छृंखलता का ही बोलबाला है। न अध्यापकों में गुरु की 
    गरिमा है और न छात्रों में शिष्य का शील स्वभाव। अनुशासन के नियन्त्रण से जीवन 
    सुखी और शान्त होता है। बिना अंकुश का हाथी, बिना लगाम का घोड़ा जिस प्रकार 
    भयंकर और विनाशकारी होता है, ठीक उसी प्रकार अनुशासन रहित समाज अत्यन्त ही 
    विनाशकारी होता है। अनुशासन जीवन को गति देता है, उसे सुरक्षित रखता है और 
    जीवन के उद्देश्यों को सार्थक बनाता है। अनुशासन से व्यक्ति में शक्ति और 
    आत्म-विश्वास की भावना का उदय होता है। उसका मनोबल ऊँचा होता है।

    अनुशासन का महत्त्व-मानव जीवन में अनुशासन का बहुत बड़ा महत्त्व है। अनुशासन 
    से तात्पर्य मुख्यतः आत्मानुशासन से ही है। नियन्त्रण तो भय और दबाव से भी 
    किया जा सकता है, किन्तु उसका प्रभाव अस्थायी होता है। भय और दबाव समाप्त हो 
    जाने के पश्चात् पुनः उच्छृंखलता की पूर्व स्थिति आ जाती है, जो अपने लिए, 
    समाज के लिए और सारे विश्व के लिए अत्यन्त ही घातक होती है। अनुशासन अपने 
    सच्चे अर्थों में ही सार्थक होगा, जो स्वेच्छा से ग्राह्य किया गया हो। जीवन 
    के कार्य-क्षेत्र में हमारे लिए अनेक कल्याणकारी नियम बनाये गये। उनका पालन 
    करना हमारे कर्तव्य के अन्दर आता है। उन नियमों का पालन कानून या डण्डे के बल 
    पर सदैव नहीं कराया जा सकता। व्यक्ति को स्वयं अपने को उन नियमों के अन्तर्गत 
    नियन्त्रित करना होगा। यदि समाज के सभी प्राणी पूर्णतः नियन्त्रित और अनुशासित 
    हो जायें तो सर्वत्र सुख और शान्ति का साम्राज्य व्याप्त हो जाय। धरती पर 
    स्वर्ग उतर आये। अनुशासन सभी सुखों की जड़ है। वह कठोरता का ऐसा पाषाणखण्ड है, 
    जिसके नीचे आनन्द का मधुर जल स्रोत छिपा हुआ है।

    विद्यालयों में अनुशासनहीनता और उसके कारण विद्यालयों में व्याप्त 
    अनुशासनहीनता के निम्नलिखित कारण कर रहे।
     
    Ashok Tiwari 

    एक टिप्पणी भेजें

    Thank You for giving your important feedback & precious time! 😊

    और नया पुराने

    संपर्क फ़ॉर्म