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    अकेले चलते जाना है...

    लखनऊ शहर नवाबों का,कहते हैं शहर नवाबों का है तो शौक और विचार भी नवाबों वाले होने चाहिए।
    आज इस लेख में वर्णित जीवन पथ पर अकेले चलते जाने का और अपने लक्ष्य की ओर बढ़ने का एक छोटा सा वृतांत पंक्तियों में है।
    कहते हैं ना भावनाएं जब विचारों को जन्म देती है तो कभी-कभी कुछ शब्दों का खेल शब्दों में ही बयां हो पाता है। 
    लखनऊ के शहीद पथ पर चलते हुए बातों ही बातों में विचारों को शब्दों का रूप दिया है।
    पुनः आज एक छोटी सी कविता लिखने का मात्र प्रयास है।।

    तू चल रहा अकेला इस जीवन पथ पर,
    तुझे आगे चलते जाना है।।

    जैसे उड़ता आकाश में पक्षी है,
    तुझे उस ऊंचाई को छूकर दिखलाना है।।
    लक्ष्य दूर है यह सोच कर,
    कभी ना तुझे पीछे हटना है।
    रास्ते में हैं कांटे बहुत से यह देख कर,
    कभी ना तुझे घबराना है।।

    यह तो मात्र जीवन का खेल है प्यारे,
    तू अकेला ही इसे खेल जाएगा।
    यदि इस खेल में हों मुश्किलें,
    तो तू सोच जरा यह खेल क्या कहलायेगा।।

    तू जीतेगा एक दिन इस बाजी को,
    तू अपने लक्ष्य को पाकर दिखला आएगा।
    हो ना दुनिया में कोई तेरी टक्कर का,
    तू ऐसा सितारा बनकर दिखला जाएगा।

    दो पल की जिंदगी है ये,
    अगले पल क्या हो किसी को क्या पता।
    तू पहले बढ़ता जा अपने लक्ष्य को पाने में,
    आगे क्या चुनौती हो, तुझे उसका क्या पता।

    तू चला जा अपने लक्ष्य की ओर,
    और फहरा कर दिखा दे, पताका अपनी जीत का।
    तू चल रहा अकेला इस जीवन पथ पर,
    तुझे आगे चलते जाना है।।

        निशांत श्रीवास्तव

    1 टिप्पणियाँ

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