विज्ञान की प्रगति और मानवीय मूल्यों का ह्रास


वर्तमान वैज्ञानिक युग में चाहे कोई भी क्षेत्र हो वैज्ञानिक अविष्कारों एवं खोजो से बनाई गई वस्तुओं का प्रचलन दिनों-दिन बढ़ता ही जा रहा है। चाहे रेल हो या हवाई जहाज़, चलचित्र हो या चिकित्सा उपकरण या फिर कंप्यूटर या स्मार्टफोन हमारे जीवन की दिनचर्या में इनका समावेशन प्रत्येक जगह पाया जाता है।

जहाँ एक तरफ मानव विज्ञान की प्रगति के उच्चतम शिखर तक पहुँचने का प्रयास कर रहा है वहीं दूसरी तरफ वर्तमान युग में मानवीय मूल्यों तथा आस्था, सहानुभूति, ईमानदारी, दया, प्रेम, संयम आदि का ह्रास होता जा रहा है। मानव व्यक्तिवादी और भौतिकवादी होता जा रहा है जिसकी प्रवृत्ति प्रगति कल्याणकारी से अधिक शोषणकारी हो गयी है। इन दोनों प्रवित्तियों के गुणों के परीक्षण से स्पष्ट होता है कि विज्ञान की प्रगति से मानवीय मूल्यों का ह्रास हो रहा है। देखा जाए तो यह धारणा वास्तविक प्रतीत होती हैं लेकिन दोनों में कारण, परिणाम संबंध व्याप्त हैं या नहीं या महज एक संयोग है कि एक में वृद्धि दूसरे के ह्रास का कारण बन रहा है। किसी परिणाम तक पहुँचने के लिये इसकी सूक्ष्म जाँच आवश्यक है।

अनूप प्रजापति
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