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    हमारे विचार

    अच्छा बुरा स्वयं में कुछ नहीं ,
    हमारे विचार ही हमें अच्छा बुरा बनाते हैं !

       संत तुलसी दास ने लिखा है
              "जाकि रहीं भावना जैसी, प्रभु मूर्त तिन देखी तैसे!
    यानी जैसे जिसकी सोच होगी वैसा ही वह अपने प्रभु में देखेगा एक भला आदमी अपने 
    आराध्य में अच्छे गुण तलाशेगा और उनकी पूजा करेगा इसके विपरीत एक बुरा आदमी 
    अपने मुताबिक गुण अपने प्रभु में देखना पसंद करेगा कुछ वैसा ही जैसे शरद के 
    पूर्व जब आसमान में बादल तमाम तरह की आकृतियां बनाते बिगाड़ते है, मनुष्य इन 
    बादलों में अपनी अपनी रुचि के अनुरूप आकार देखते है अच्छा या बुरा होना तो 
    मनुष्य की मानसिकता है एक अच्छा शोध भी अगर गलत हाथो में पड़ जाए तो वह उससे 
    विनाश की ही बात सोचेगा और अच्छे हाथो में पड़ जाए तो वह उसका सकरात्मक या 
    रचनात्मक इस्तेमाल करेगा परमाणु ऊर्जा मनुष्य जाति के लिए जितनी खतरनाक है 
    उतनी ही उपयोगी भी ! अब यह उसके उपयोग करने के रूप पर निर्भर करता है यदि इसका 
    उपयोग परमाणु बम निर्माण मे करे तो य़ह विध्वंसक परिणाम दे सकती है वही यदि 
    इसे विद्युत ऊर्जा निर्माण मे प्रयुक्त किया जाए तो ऊर्जा संकट का समाधान 
    सिद्ध हो सकती है
    हिंसक वृत्ति का आदमी अपनी हिंसा का त्याग नहीं कर पाता है और अपने स्वभाव के 
    अनुरूप वह हर अविष्कार में यहि ढूँढता है इसीलिए महात्मा गांधी ने स्वाधीनता 
    की लड़ाई के वक़्त अहिंसा पर जोर दिया था अहिंसा का मतलब सिर्फ जीव प्रति दया 
    नहीं बल्कि अपने बुरे स्वभाव पर काबू पाना है इसे यू कहा जा सकता है कि हिंसा 
    का अभाव ही अहिंसा हिंसा है किसी भी प्राणी को किसी तरह का कष्ट ना पहुंचाना 
    अहिंसा है और अहिंसा तभी आयेगी जब मनुष्य के स्वभाव में ही का अभाव होगा सवाल 
    य़ह है कि हिंसा का भाव मनुष्य के मन में आता ही क्यों है? हिंसा का मूल स्रोत 
    है राग द्वेष और मनुष्य की अनियंत्रित वासनाएं वासना यानी कि जगत और प्रकृति 
    से अपरिमित स�अपरिमित सुख पाने की लालसा और और इस चक्कर मे वह प्रकृति का दोहन 
    करता है और जगत की हर चीज पर नियंत्रण पाना चाहता है वह बस आहार निद्रा और काम 
    तक सीमित है इसलिए उसकी वासनाएं बस प्रकृति है और उसकी माग भी
    हालाकि एक बार अगर मनुष्य सहज जीवन या अच्छे विचारों वाला जीवन अपना ले तो उसे 
    फिर कभी बुरे मार्ग पर चलने का प्रयास नहीं करना पड़ेगा क्योंकि बुरे मार्ग 
    पर चलने के लिए निरंतर बुरा सोचना पड़ता है जबकि अच्छे और सहज विचारो के मार्ग 
    पर चलने के लिए सायास उपाय नहीं करने पड़ते लेकिन स्वभाव की इस वृत्ति पर 
    नियंत्रण कर पाना आसान नहीं पहले तो मनुष्य को अच्छे गुणों के लिए प्रयास करना 
    पड़ेगा और एक बार यह गुण आपके अंदर आ गए तो फिर कभी उस मार्ग पर जाने की ओर 
    प्रवृत्ति ही नहीं होगी लेकिन इस अच्छे मार्ग पर चलने के लिए साहस जरूर चाहिए 
    और वह साहस है अंतर्मन का जिसमें निरन्तर अच्छे-बुरे विचारो का द्वंद में 
    अच्छे की ओर अपनी प्रवृत्ति बढ़ानी होगी तब हर शोध और हर अविष्कार के प्रति 
    दृष्टी कोण सकरात्मक हो जाएगा और विचार रचनात्मक
                                                         - Arjun shukla

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