शिक्षा ही किसी समाज और राष्ट्र की जागृति का मूल आधार है। अतः शिक्षा का
उदेश्य साक्षरता के साथ साथ जीवनोपयोगिता भी होना चाहिए। शिक्षा-नीति से
अभिप्राय शिक्षा में कतिपथ सुधारों से होता है। इसका अधिक सम्बन्ध भावी पीढ़ी
से होता है। शिक्षा-नीति के द्वारा हम अपने समय के समाज और राष्ट्र की
आश्वयकताओं को पूर्ण रूप से सार्थक सिद्ध करने के लिए कुछ अपेक्षित मानसिक और
बौद्धिक जागृति को तैयार करने लगते हैं। नई शिक्षा-नीति का एक विशेष अर्थ है,
जो हमारी सोच समझ में हर प्रकार से एक नयापन को ही लाने से तात्पर्य प्रकट
new-education-policyभारत की स्वतंत्रता के बाद शिक्षा सम्बन्धित यहाँ विविध
प्रकार के आयोगों और समितियों का गठन हुआ। इनसे आशातीत सफलता भी मिली। इस
सन्दर्भ में महात्मा गाँधी की ‘बुनियादी शिक्षा’ की दृष्टि बहुत अधिक कारगर और
अपेक्षापूर्ण सफलता की ओर भी थी। इसी के अन्तर्गत ‘बेसिक विद्यालयों’ की
शुरूआत की गई थी। सन् 1953-54 ई. में भारत सरकार ने शिक्षा पद्धति पर
गम्भीरतापूर्वक विचार करके आयोग का गठन किया था। इसके अनुसार प्राथमिक शिक्षा
चौथी से बढ़ाकर पाँचवीं तक कर दी गयी।
इसी तरह सन् 1964 सन् 1966, सन् 1968 और सन् 1975 में शिक्षा सम्बन्धी आयोग
गठित होते रहे। सन् 1986 में 10+2+3 की शिक्षा पद्धति शुरू की गई थी। उसे कुछ
राज्यों में भी लागू किया गया।
सन् 1986 में लागू की गई शिक्षा-नीति की घोषणा करते हुए तत्कालीन प्रधानमंत्री
ने इसे पूरे राष्ट्र की आश्वयकता बतलाया। इसे पूर्वकालीन शिक्षा सम्बन्धित
विभिन्ताओं और त्रुटियों को दूर करने वाली भी बतलाया था। इसे ही नयी
शिक्षा-नीति की संज्ञा दी गई थी। इस शिक्षा-नीति की निम्नलिखित विशेषताएँ हैं-
जीवन शिक्षा की एकरूपता- इस नयी शिक्षा-नीति को जीवन पर आधारित बनाया गया
था। इसे जीवनानुकूल होने पर बल दिया गया। इसके लिए प्रधानमंत्री ने एक विशेष
मन्त्रालय बनाया। उसका नाम ‘मानव संसाधन एवं विकास मंत्रालय’ रखा गया। इससे
शिक्षा को मानव जीवन के विभिन्न अंगों से जोड़ने के साथ ही साथ इसके विकास से
विभिन्न संसाधनों अर्थात् सरकारी, अर्ध-सरकारी और गैर- सरकारी सहायता स्रोतों
की उपलब्धि भी सुलभ हो गई। इसमें साहित्य-संस्कृति और भाषा विकास आदि के
प्रवेश से शिक्षा का क्षेत्र बहुत फैल गया।
2. एकरूपता- इस शिक्षा-नीति के द्वारा पूरे देश में एक ही ढंग की शिक्षा,
अर्थात् सभी विद्यालयों में 10+2 कक्षा तक तथा सभी महाविद्यालयों में एक सा
तीन वर्षीय उपाधि पाठ्यक्रम लागू कर दिया गया।
प्रतिभाशाली विद्यार्थियों की खोज- नयी शिक्षा-नीति के द्वारा प्रतिभाशाली
विद्यार्थियों और योग्य शिक्षार्थियों के लिए जिलास्तर पर ‘नवोदय विद्यालयों’
को स्थापित करने की योजना बना दी गई है। इन विद्यालयों में विशेष स्तर की
शिक्षा देने की व्यवस्था है।
7. परीक्षा-पद्धति में परिवर्तन- नयी शिक्षा-नीति में परीक्षा की विधि एवं
पूर्व परीक्षा विधि की तरह परीक्षा भवन में बैठ बैठकर रटे रटाए प्रश्नोत्तर
लिखने तक सीमित नहीं रह गई है, अपितु विद्यार्थियों के व्यावहारिक अनुभव को भी
परीक्षा का आधार बनाया गया है। इसमें प्रत्याशी अपने व्यावहारिक स्तर के
मूल्यांकन के आधार पर कोई पद, व्यवसाय या उच्चतम अध्ययन को चुनने के लिए बाध्य
होगा।
इस प्रकार से हमारी नयी शिक्षा-नीति हर प्रकार से अपेक्षित और उपयोगी
शिक्षा-नीति होगी और यह सभी प्रकार की अटकलों और भटकनों को दूर करने में समर्थ
होगी।
सत्यम चौरसिया
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