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    आधुनिक समय में सोशल मीडिया

    आज के समय में सोशल मीडिया कहा जाता है कि सूचना दोधारी तलवार की तरह होती है। एक ओर इसका उपयोग भ्रम और 
    कहरता फैलाने में किया जा सकता है, तो दूसरी ओर रचनात्मक कार्यों में भी किया 
    जा सकता है। सूचना क्रांति के इस आधुनिक दौर में सोशल मीडिया की भूमिका को 
    लेकर हमेशा सवाल उठते रहे हैं। आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक प्रगति में सूचना 
    क्रांति ने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई है किंतु सूचना क्रांति की ही उपज, सोशल 
    मीडिया को लेकर उठने वाले सवाल भी महत्त्वपूर्ण हैं। ये सवाल हैं- क्या सोशल 
    मीडिया हमारे समाज में ध्रुवीकरण की स्थिति उत्पन्न कर रहा है तथा समाज की 
    प्रगति में सोशल मीडिया की क्या भूमिका होनी चाहिये? हम एक ऐसी दुनिया में 
    रहते हैं जहाँ हम सूचना के न केवल उपभोक्ता है, बल्कि उत्पादक भी हैं। यही 
    अंतर्द्वद्व हमें इसके नियंत्रण से दूर कर देता है। प्रतिदिन कई बिलियन लोग 
    फसेबुक पर लॉग-इन करते हैं। हर सेकेंड ट्वीटर पर ट्वीट किये जाते हैं और 
    इंस्टाग्राम पर कई तस्वीरें पोस्ट की जाती हैं।

    अगर सोशल मीडिया द्वारा ध्रुवीकरण की बात की जाए तो हम पाते हैं कि अतीत में 
    इस संबंध में कई प्रयोग किये गए थे। 1950 के दशक में सामाजिक मनोवैज्ञानिक 
    सोलोमन असच द्वारा मनोवैज्ञानिक प्रयोगों की एक पूरी श्रृंखला की शुरूआत गई 
    थी। ये प्रयोग यह निर्धारित करने के लिये किये गए थे कि बहुमत की राय के आगे 
    किसी व्यक्ति की राय किस प्रकार प्रभावित होती है। इसका यह निष्कर्ष सामने आया 
    कि कोई व्यक्ति सिर्फ बहुमत की राय के साथ शामिल होने के कारण गलत जवाब देने 
    के लिये तैयार था। कुछ लोगों ने अपना उपहास न उड़ने देने के कारण गलत जवाब 
    दिये। यद्यपि 1950 के दशक से संचार का यह स्वरूप विकसित होकर नए रूप में प्रकट 
    हुआ है, लेकिन इसके बावजूद मानव का स्वभाव इसके साथ सामंजस्य बैठाने में सफल 
    नहीं हो पाया। कुछ हद तक यह धारणा ऑनलाइन फेक न्यूज के प्रभाव को भी इंगित 
    करती है, जिसने समाज में ध्रुवीकरण के विस्तार में योगदान दिया है। सोशल 
    मीडिया की साइट्स उत्प्रेरक की भूमिका भी निभाती है। उदाहरणस्वरूप ट्विटर 
    नियमित रूप से उन लोगों के अनुसरण हेतु प्रेरित करता है जो हमारे समान 
    दृष्टिकोण रखते हैं।

    इस प्रकार हम पाते हैं कि सोशल मीडिया के प्रभाव के कारण लोगों के सोचने का 
    दायरा संकुचित होता जा रहा है जो न केवल मतदान के समय व्यवहार में परिवर्तन 
    लाता है बल्कि हर रोज व्यक्तिगत वार्त्ताओं में भी इसका भारी प्रभाव पड़ रहा है।

    अगर सोशल मीडिया के मूल अर्थ की बात की जाए तो कंप्यूटर, टैबलेट या मोबाइल के 
    माध्यम से किसी भी मानव संचार या इंटरनेट पर जानकारी साझा करना सोशल मीडिया 
    कहलाता है। इस प्रक्रिया में कई वेबसाइट एवं एप का योगदान होता है। सोशल 
    मीडिया वर्तमान समय में संचार के सबसे बड़े साधन के रूप में उभर कर आया है और 
    दिनोदिन इसकी लोकप्रियता में वृद्धि हो रही है।
    सोशल मीडिया द्वारा विचारों, सामग्री, सूचना और समाचार को तीव्र गति से लोगों 
    के बीच साझा किया जा सकता है। सोशल मीडिया को एक तरफ जहाँ लोग वरदान मानते हैं 
    तो दूसरी तरफ लोग इसे एक अभिशाप के रूप में भी देखते हैं।

    सोशल मीडिया के सकारात्मक प्रभावों की बात जाए तो यह समाज के सामाजिक विकास 
    में मदद करता है। इसके द्वारा प्रदत्त सोशल मीडिया मार्केटिंग जैसे उपकरण 
    द्वारा लाखों सभावित ग्राहकों तक पहुँच स्थापित की जा सकती है और समाचार का 
    प्रेषण किया जा सकता है। सामाजिक मुद्दों पर जागरूकता उत्पन्न करने के संदर्भ 
    में सोशल मीडिया को एक बेहतरीन उपकरण माना जाता है। इसके द्वारा समान 
    विचारधारा वाले लोगों के साथ संपर्क भी स्थापित किया जा सकता है। विश्व के 
    सुंदरतम कोने तक अपनी बातों को कम समय में तीव्र गति से अधिकतम लोगों तक 
    पहुँचाने के लिये यह एक सर्वश्रेष्ठ साधन बन चुका है।

    सोशल मीडिया को शिक्षा प्रदान करने के संदर्भ में एक बेहतरीन साधन माना जा रहा 
    है। इसके द्वारा ऑनलाइन जानाकरी का तेजी से हस्तांतरण होता है। इसके द्वारा 
    ऑनलाइन रोजगार के बेहतरीन अवसर प्राप्त होते हैं। साथ ही व्यवसाय, चिकित्सा, 
    नीति निर्माण को प्रभावित करने में भी इसकी महत्त्वपूर्ण भूमिका होती है। 
    वर्तमान समय में शिक्षक एवं छात्रों द्वारा फेसबुक, ट्विटर, लिंक्डाइन आदि 
    जैसे प्लेटफॉर्म का प्रयोग किया जा रहा है। इसके द्वारा शिक्षक एवं छात्रों के 
    मध्य दूरी सिमट कर कम हो गई है। प्रोफेसर स्काइप, ट्विटर और अन्य जगहों पर 
    इसके मदद से लाइव चैट करते हैं। सोशल मीडिया के कारण शिक्षा आसान हो गई है।

    हालाँकि कई भौतिकविदों का मानना है कि सोशल मीडिया लोगों में अवसाद और चिंता 
    के प्रसार का एक सबसे बड़ा कारण है। सोशल मीडिया के अत्यधिक प्रयोग से सोने की 
    आदतों में बदलाव, साइबर अपराध, बच्चों के प्रति लगातार बढ़ते दबाव और एक 
    प्रभावशाली प्रोफाइल युवाओं को बड़े पैमाने पर प्रभावित कर रही है। इसमें 
    अत्यधिक व्यस्तता के कारण अन्य कार्यों के लिये बहुत कम समय बचता है एवं अन्य 
    गंभीर मुद्दों की उत्पत्ति होती है जैसे ध्यान कम लगना, चिंता एवं अन्य 
    मुद्दे। इसके अत्यधिक प्रयोग एवं गोपनीयता से निजता में कमी आती है। यह 
    उपयोगकर्त्ता को साइबर अपराधों जैसे हैकिंग, पहचान संबंधी चोर फिशिंग अपराधों 
    आदि के प्रति संवेदनशील बनाता है।

    सोशल मीडिया का दुरुपयोग भी कई रूपों में किया जा रहा है। इसके जरिये न केवल 
    सामाजिक और धार्मिक उन्माद फैलाया जा रहा है बल्कि राजनीतिक स्वार्थ के लिये 
    भी गलत जानकारियाँ पहुँचाई जा रही है। इससे समाज में हिंसा को तो बढ़ावा मिलता 
    ही है, साथ ही यह हमारी सोच को भी नियंत्रित करता है।

    विश्व आर्थिक मंच की एक रिपोर्ट के अनुसार सोशल मीडिया के जरिये झूठी सूचना का 
    प्रसार उभरते जोखिमों में से एक है। यकीनन यह देश की प्रगति की राह में रुकावट 
    है और ऐसे में जरूरी हो जाता है कि हमारी सरकार इसमें दखल कर इस पर लगाम लगाने 
    का प्रयास करे। केंद्र सरकार ने सूचना तकनीक कानून की धारा 79 में संशोधन के 
    मसौदे द्वारा फेसबुक और गूगल जैसी कंपनियों की जवाबदे‌हिता तय करने का प्रयास 
    किया था। इसके तहत आईटी कपंनियाँ फेक न्यूज की शिकायतों पर न केवल अदालत और 
    सरकारी संस्थाओं बल्कि आम जनता के प्रति भी जवाबदेह होंगी। देश जैसे-जैसे 
    आधुनिकीकरण के रास्ते पर बढ़ रहा है चुनौतियाँ भी बढ़ती जा रही है। ऐसे में भारत 
    को जर्मनी जैसे उस कठोर कानून की जरूरत है जो सोशल मीडिया पर आपत्तिजनक 
    सामग्री का इस्तेमाल करने वालों पर शिंकजा कसने के लिये बनाया गया था। इसके 
    अलावा ‘सोशल मीडिया इंटेलीजेंस’ के जरिये सोशल मीडिया गतिविधियों का विश्लेषण 
    करते रहना भी आवश्यक है। इससे आपत्तिजनक सामग्रियों को बिना देर किये हटाया जा 
    सकेगा।

    सोशल मीडिया ने अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार को नया आयाम दिया है। आज 
    प्रत्येक व्यक्ति बिना किसी डर के सोशल मीडिया के माध्यम से अपने विचार रख 
    सकता है और उसे हजारों लोगों तक पहुँचा सकता है, परंतु सोशल मीडिया के 
    दुरुपयोग ने इसे एक खतरनाक उपकरण के रूप में भी स्थापित कर दिया है जिसके कारण 
    इसके विनियमन की आवश्यकता लगातार महसूस की जा रही है। अतः आवश्यक है कि निजता 
    के अधिकार का उल्लंघन किये बिना सोशल मीडिया के दुरुपयोग को रोकने के लिये सभी 
    पक्षों के साथ विचार-विमर्श कर नए विकल्पों की खोज की जाए, ताकि भविष्य में 
    इसके संभावित दुष्प्रभावों से बचा जा सके।

    Subhiksha yadav

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