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    भारत में कानून व्यवस्था

    प्रस्तावना:- जनमानस (सामान्य भाषा में सामान्य नागरिक) जिनके लिए कानून व्यवस्था सामाजिक तौर पर महत्वपूर्ण होती ह.यह एक जनमानस के लिए अच्छे समाज और अच्छे माहौल का निर्माण करती है. कानून व्यवस्था एक ऐसा शब्द है जिसे आप अक्सर न्यूज़पेपर या सोशल मीडिया सभी जगह इसका नाम आता रहता है .और यह सामाजिक तौर पर भी महत्वपूर्ण होती हैं. एक बेहतर कानून व्यवस्था जनमानस के लिए और अच्छे समाज और अच्छा माहौल का निर्माण करती ह. जो कि अति आवश्यक है सामान्य नागरिक के लिए इस क़ानून व्यवस्था का पालन हर जनमानस को संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत पुलिस ,कानून व्यवस्था और जनमानस ,राज्य के विषय है .अपराध रोकना ,उसे दर्ज, करना उसकी जांच पड़ताल करना और अपराधियों के विरुद्ध अभियोजन चलाने की मुख्य भूमिका राज्य सरकार खासकर पुलिस को दी जाती है संविधान के मुताबिक ही केंद्र सरकार पुलिस आधुनिकरण , अस्त्र, शस्त्र,उपस्कर ,मोबिलिटी ,प्रशिक्षण और अन्य अवसंरचना के लिए राज्य सरकारों को वित्तीय सहायता प्रदान करता है.
    :सी.सी.आ.एस:- भी होती है जो कि जिलों में जिला अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो और राज्य अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो को कंप्यूटर प्रणाली से जोड़ दिया गया है .इनमें अपराध रोकने ,सेवा प्रदाता क्षेत्र में सुधार करने, पुलिस ,कानून एजेंसीया,अपराधीयो ,और अपराध से जुड़ी संपत्ति का एक राष्ट्र स्तरीय डाटाबेस रखती है .जो कि किसी भी तरह का अपराध को रोकने जनमानस के लिए कानून की व्यवस्था अतिमहत्वपूर्ण है .
    ओ.सी.आई.एस:- इसके साथ ही एक और नई प्रणाली विकसित की जा रही है.जनमानस के लिए जिसका नाम है ओ.सी.आई.एस.है इसमें विभिन्न अपराधो के आंकड आसानी से मिल जाते है .और कानून व्यवस्था को जनमानस के लिए बेहतर बनाते है.
    जनमानस के लिए समान नागरिक संहिता की कानून व्यवस्था
    इसके मुताबिक हमारा देश में प्रत्येक व्यक्ति का जन्म और मृत्यु का रजिस्ट्रेशन अनिवार्य करती ह.ताकि इससे व्यवस्था बनी रहे और किसी भी तरिके का मतभेद ना उत्पन्न हो इसके लिए शादी का रजिस्ट्रेशन भी अनिवार्य कर दिया गया है हमारे देश में किसी भी व्यक्ति के लिए अंतरजातीय और अन्य धर्म में विवाह करने की बंदिश नहीं है सब के लिए कोर्ट मैरिज का विकल्प है सभी को 18 साल की उम्र में वोट डालने का अधिकार है और लड़कों के लिए 21 साल उम्र निर्धारित की गई है और यह सभी पर लागू होती है जनमानस की भलाई और किसी भी प्रकार के मतभेद से बचाने के लिए इस तरह की कानून व्यवस्था हमारे देश में बनाई गई है सभी नागरिक को समान अधिकार हमारे देश का नियम है जो सब पर लागू होता है .
    जनमानस के लिए कानून व्यवस्था की सहायता
    हमारे देश के संविधान के अनुच्छेद 39 में सभी के लिए एक समान सुनिश्चित न्याय प्रदान किया गया है ,समाज के कमजोर वर्ग और गरीबों के लिए निशुल्क कानूनी सहायता की व्यवस्था की गई है अनुच्छेद 14 और 22(1) के तहत राज्य का दायित्व है कि वह सबके लिए समान अवसर सुनिश्चित करें और इसी के तहत 1987 में विधिक सेवा प्राधिकरण अधिनियम पास किया गया जिसके तहत समाज के कमजोर और गरीबों को सहायता की जाती है
    भारत के मुख्य न्यायाधीश प्राधिकरण के मुख्य संरक्षक, उच्चतम न्यायालय के न्यायधीश और इस कार्यकारी के अध्यक्ष इस कार्य को संभालते हैं.

    बिखरती शासन व्यवस्था - देश में पिछले कुछ समय की घटनाए लार्ड वावेल के इस निष्कर्ष की पुष्टि करती है कि भारतीयों को सख्ती से शासित किया जा सकता है, अन्यथा बिल्कुल नहीं ।
    हैदराबाद एव मुंबई में आतंकी हमला, आगरा और हरियाणा के कुछ इलाकों में लोक व्यवस्था भंग होना और भागलपुर में एक छुटभैये अपराधी के साथ पुलिस और जनता द्वारा किया गया बर्ताव इस बात का द्योतक है कि भारत अराजकता की नयी परिभाषा लिखने के कगार पर है ।
    आतरिक सुरक्षा की स्थिति श्रम है । कश्मीर में आतंकवाद और असम (असोम) और नक्सलवाद प्रभावित इलाकों में अराजकता कम होने का नाम नहीं ले रही है । दंगे-फसाद बढ़ते जा रहे है और कानून एवं व्यवस्था को कायम रखना मुश्किल होता जा रहा है ।
    वर्तमान हालात की विस्तृत रूपरेखा खींचने से पहले यह जरूरी होगा कि तीन शब्दों-आतरिक सुरक्षा, लोक व्यवस्था तथा सामान्य कानून एवं व्यवस्था के मापदंडों की बारीकी से पडताल की जाये । आमतौर पर इन तीनों को एक साथ मेल कर दिया जाता है । आतंकवाद और तोड़फोड़ की तमाम घटनाएं, जिन्हें देश की संप्रभुता और स्थायित्व के दुश्मनों द्वारा अंजाम दिया जाता है, आतरिक सुरक्षा की समस्या पैदा करती है ।
    व्यापक पैमाने पर हिंसा, जैसे मजहबी या जातीय दंगे, लोक व्यवस्था की परिधि में एक व्यक्ति या व्यक्तियों के एक समूह द्वारा किये जा रहे अपराध आते हैं । इन दोनों वर्गो के अपराधों की जांच-पड़ताल अलग-अलग तरीके से की जाती है । सबसे पहले कानून एवं व्यवस्था के मुद्दे को लेते हैं ।
    यह निराशाजनक है कि आपराधिक मामलों की सख्या और उनके घटित होने की आशका बढ़ती जा रही है, लेकिन न तो जांच-पड़ताल और कानूनी कार्रवाई के तौर-तरीके में बदलाव आ पा रहा है और न ही पुलिस बल का आचार-व्यवहार बेहतर हुआ है ।


    शिवांगी श्रीवास्तव 

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