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    भारत में शिक्षा व्यवस्था-

    शिक्षा के क्षेत्र में–
    अशिक्षा के कलंक को मिटाने का भी देश में अथक प्रयास हुआ है। प्राथमिक शिक्षा अनिवार्य कर दी गई है। प्रौढ़–शिक्षा जैसे आन्दोलन भी चलते रहे हैं। शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने का कानून पारित हो चुका है।
    विज्ञान और प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हमारा भारत वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी दृष्टि से भी विश्व के अनेक विकसित देशों की श्रेणी में आ गया है। साइकिल से लेकर अन्तरिक्ष यान तक देश में बन रहे हैं। परमाणु विज्ञान, धातु विज्ञान, अन्तरिक्ष अनुसन्धान, सूचना प्रौद्योगिकी, संचार, शस्य विज्ञान आदि पर निरन्तर अनुसन्धान हो रहे हैं। सूचना प्रौद्योगिकी में तो भारत ने सारे विश्व में अपनी धाक जमा ली है।
    हमारी अनेक कम्पनियाँ विदेशों में नामी कम्पनियों का अधिग्रहण कर रही हैं। टाटा स्टील द्वारा कोरस का अधिग्रहण इस दिशा में उल्लेखनीय है। सॉफ्टवेयर व्यवसाय में तो भारत की धूम मची हुई है। निर्यात व्यापार में भी उल्लेखनीय वृद्धि हो रही है। विदेशी मुद्रा भण्डार निरन्तर बढ़ता जा रहा है।
    सुरक्षा के क्षेत्र में सुरक्षा के क्षेत्र में भी भारत अब किसी से पीछे नहीं है। परम्परागत तथा नवीनतम अस्त्र–शस्त्रों का निर्माण देश में हो रहा है। टैंक, रडार, मिसाइल, लड़ाकू यान, ‘पृथ्वी’, ‘त्रिशूल’, ‘अग्नि’ आदि प्रक्षेपास्त्रों का विकास देश को सुरक्षा के प्रति आश्वस्त बना रहा है। हम विश्व की परमाणु शक्ति बन चुके हैं। अमेरिका से हुआ परमाणु–समझौता उल्लेखनीय है। अग्नि 5 मिसाइल का सफल परीक्षण भारत की बढ़ती सुरक्षा व्यवस्था का प्रमाण है।
    आर्थिक क्षेत्र में देश का शेयर बाजार आत्मविश्वास से परिपूर्ण है। गत वर्षों में आर्थिक प्रगति 8 से 10 प्रतिशत रही है। विदेशी पूँजी का निवेश निरन्तर बढ़ रहा है। ये सारे मानदण्ड देश के विकास को प्रमाणित करते हैं। जब अमेरिका और यूरोपीय देशों में मंदी तथा बेरोजगारी बढ़ रही है, भारत में विकास दर ठीक बनी रहने की उम्मीद है। 
    शिक्षा शब्द जिस गुरुता को प्रगट करता है उसका महत्व अपरिमेय है। शिक्षा द्वारा मानव मन और वृद्धि का स्वाभाविक विकास होता है। आज के युग में इस किसी परिभाषा विशेष में बांधने का प्रयत्न चांद-तारों तक पहुंच सके। आज शिक्षा का रूप भी कुछ अजीब और अस्पष्ट है। आध्यात्मवाद से पलायनोन्मुख या अदासीन शिक्षा-शिक्षा नहीं हो सकती। एतदर्थ आज कोई शिक्षा की परिभाषा नहीं हो पाती।
    शिक्षा क्या है, यदि इस विषय पर पुस्तकीय ज्ञान से दूर हटकर थोड़ा सोचते हैं तो लगता है जीवन में जो भी कुछ सीखते हैं वह सभी शिक्षा है। पशुओं से लेकर जीवनयापन के लिए प्रत्येक पेशे में सफलता-प्राप्ति के लिए जो कुछ करते हैं, उसे भी तो शिक्षा ही कहते हैं। किंतु क्या यह सब शिक्षा है?
    शिक्षा बालक के स्वाभाविक विकास का नाम है, जो मनोवैज्ञानिक आधार पर हो। विनय शिक्षा का स्वभाव है और जिसमें निहित है सत्य, शिव, सुंदर। ‘विनय’ एन.डी.सी.आई. द्वारा कदापि नहीं लाया जा सकता। खेद तो यह है कि इस पर करोड़ों रुपए सरकार खर्च कर रही है जबकि शिक्षा का आधार मनोवैज्ञानिक माना जाता है। तब इस प्रकार शिक्षा में विनय लाना अमनोवैज्ञानिक और अस्वाभाविक क्यों नहीं माना जाता है। 


    अभिनव शर्मा

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