आखिर आरक्षित वर्ग के लोग कब समझेंगे कि वोट बैंक की कुटिल चाल में उन्हें पंगु बनाया जा रहा है ?

 छत्तीसगढ़ हाई कोर्ट ने राज्य सरकार के 58%आरक्षण को असंवैधानिक करार दिया , इसके विरोध में छत्तीसगढ़ के सभी आदिवासी विधायक लाबिंग कर के सरकार पर दबाव बनाया जिससे छत्तीसगढ़ की  सरकार की तरफ से कपिल सिब्बल, मनु संघवी, आदि बड़े वकील सुप्रीम कोर्ट मे पैरवी किए, परंतु सुप्रीम कोर्ट ने भी हाई कोर्ट के फैसले को बरक़रार रखा।
      आखिर क्यों सरकारें या स्थापित राजनीतिक दल जातिगत आरक्षण की वकालत करके सामाजिक भेद भाव को बढ़ावा दे रहे हैं? आखिर आरक्षण के नाम से कब तक विशेष समुदाय को पंगु बनाया जाता रहेगा? आखिर आरक्षित वर्ग कब यह समझेगा कि, जो भी स्थापित जन प्रतिनिधि, अधिकारी या चतुर चालाक लोग हैं ,वे ही इस आरक्षण का पीढ़ी दर पीढ़ी लाभ ले रहे हैं, बाकी भोले _भाले आदिवासी परिवारों को अच्छी शिक्षा और संस्कारो से दूर रखने हेतु आरक्षण का लाली पॉप दिखाकर अपना वोट बैंक तैयार करने मे लगे हुए हैं,75 सालो बाद जहां आरक्षण समाप्ति की बात होनी चाहिए वहां आरक्षण बढ़ाने की कोशिश प्रदेश और देश के लिए दुर्भाग्य जनक स्थित नहीं तो और क्या है?  
       आखिर न्यायालय की मनसा जो "सभी नागरिकों को समान अधिकार" वाली संवैधानिक भावना के अनुरूप है, उससे छेड़ _छाड़ करने पर सत्ता पक्ष और विपक्ष क्यों आमादा है? क्या किसी भी सामाजिक, राजनीतिक संगठन को देश हित की चिंता नहीं है ?
      आखिर ऐसी स्थिति मे राष्ट्रवादी, देशभक्त लोग या विभिन्न सामाजिक संगठन जैसे कायस्थ समाज, क्षत्रिय समाज, वैश्य समाज, अग्रवाल समाज, ब्राह्मण समाज, सवर्ण समाज के विधायक व सांसद, और विभिन्न आरक्षण विरोधी संगठन क्यों नहीं विरोध कर रहे है ?
       दस वर्षो के लिए संविधान प्रदत्त आरक्षण को वोट बैंक की कुटिल नीति के चलते बार _बार बढ़ाया जा रहा है, सुप्रीम कोर्ट के 50% की सीमा को भी लाघने का प्रयास किया जाता है, आखिर जन सामान्य कब तक इस तरह की घिनौनी राजनीति को सहन करता रहेगा ? आखिर कब तक योग्यता को आरक्षण की बलिवेदी पर बलिदान होना पड़ेगा ? आखिर आरक्षित वर्ग कब समझेगा कि वोट बैंक के लिए उन्हें पंगु बनाए रहने का षडयंत्र पिछले 70 सालों से चल रहा है ?
     क्या किसी के पास इसका जवाब है ?

डा शिव शरण श्रीवास्तव "अमल "
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