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    भ्रष्टाचार

    जनसंख्या के साथ ही भ्रष्टाचार भी बढ़ता जा रहा है अगर समय रहते देश से यह दोनों चीजें को नहीं खत्म किया गया या कम किया गया तो देश की हालत बहुत बुरी हो सकती है इससे कम करने की जिम्मेदारी ना सिर्फ सरकार की है बल्कि हम जनता का भी कर्तव्य बनता है कि हम अपने देश को न सिर्फ साफ सुथरा रखें बल्कि उसे भ्रष्टाचार से मुक्त रखने में भी मदद करें। पेड़ पौधे लगाने में भी अपना योगदान दें , भ्रष्टाचार का कारण, भारत में या फिर किसी भी देश में भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा कारण देश के नेता है और उनसे भी बड़ा कारण है किसी भी देश की जनता जो भ्रष्टाचार के साथी हैं जनता भ्रष्टाचार को सहती है इसलिए नेता या फिर ब्यूरोक्रेट्स हम जनता पर भ्रष्टाचार करते हैं हम जनता को तो आदत पड़ती जा रही है भ्रष्टाचार सहने की यह तो तय है कि जब तक जनता भ्रष्टाचार सहती रहेगी उसके खिलाफ आवाज नहीं उठाएंगी,  जनता पर जुल्म होता रहेगा हम सिटीजन का यह हक होता है कि हम खुद के साथ वे गलत व्यवहार के खिलाफ आवाज उठाएं और अगर कोई हमारी आवाज को दबाना चाहता है तो उसका भी हम जमकर विरोध करें ना सिर्फ अपने लिए बल्कि दूसरों के लिए भी आवाज उठा सकते हैं जब हम ऐसा करने लगेंगे तो हम पाएंगे कि धीरे-धीरे हम पर भ्रष्टाचार व दुर्व्यवहार कम हो रहा है तब हमें ऐसे लगेगा कि हमारे साथ हमने कुछ तो अच्छा किया जो हमारे साथ होना चाहिए, 2 अक्टूबर हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी जी की जयंती थी साथ ही हमारे दूसरे प्राइम मिनिस्टर मिस्टर लाल बहादुर शास्त्री जी का भी जन्मदिन था गांधीजी भ्रष्टाचार ना सहने वालों के लिए सबसे बड़ा उदाहरण हैं पहले के टाइम में जब अंग्रेज हमारे देश में शासन करते थे तब उन्होंने भारतीयों और अंग्रेजों को यात्रा करने के लिए भी अलग-अलग सिस्टम बना रखा था ।  एक बार गांधी जी ने ट्रैवेल करने के लिए प्रथम श्रेणी का टिकट ले लिया गांधीजी इस बात से बिल्कुल अनजान थे फर्स्ट श्रेणी में सिर्फ और सिर्फ गोरे लोग ही यात्रा करते हैं और तृतीय श्रेणी में भारतीय यात्रा करते थे जब गांधीजी ट्रेन में गए तो उन्हें सिर्फ और सिर्फ गोरे लोगों को देख कर बहुत अजीब लगा पर फिर भी वह बैठ गए लेकिन जैसे ही गोरे लोगों की नजर गांधीजी पर पड़ी वे गांधीजी को जबरदस्ती ट्रेन से निकाल दिए गांधी जी कहते रहे मेरे पास प्रथम श्रेणी में बैठने का टिकट भी है पर उन्होंने गांधीजी की एक न सुनी और उन्होंने गांधी जी को ट्रेन से निकाल दिया , गांधी जी को बहुत बुरा लगा और उन्होंने निश्चय किया कि वे वाइट पीपुल और ब्लैक पीपुल के बीच का डिफरेंस खत्म करके ही रहेंगे उन्होंने निश्चय किया कि वे किसी भी प्रकार का भेदभाव नहीं सहेंगे और उन्होंने वह करके भी दिखाया इसे खत्म करने के लिए उन्हें कई मुश्किलों का सामना भी करना पड़ा पर उन्होंने हार नहीं मानी मैं सिर्फ इतना कहना चाहती हूं कि अगर हम कुछ भी करने का निश्चय कर लें तो वह हमारे लिए मुश्किल नही है और ना ही नामुमकिन है ।  संक्षेप में कहा जाए तो
    'लहरों से डरकर नौका कभी पार नहीं होती, 
    और कोशिश करने वालों की कभी हार नहीं होती। 


    अंजू चौरसिया

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