हारना मेरा अंत नही.........

चाहें तुफान आये कितने भी
उनसे भी लड़ जाना है 
हर चुनौती को धूमिल करके
उसको ये बतलाना है
चाहें करले कितनी कोशिश 
मुझको तो बस आगे बढ़ते जाना है
छायें कितनी काली रातें 
उनको जगमग कर जाना है
जब डगमगाये विश्वास तुम्हारा
खुद से ही टकराना है
जब कोई ना हो साथ तुम्हारे 
खुद को ही समझाना है
लोगों का क्या भरोसा कब दिखलाए कितने रंग
रंग जाना है खुद के रंग में 
खुद को गले लगाना है
दिन रात रोज आयेंगे, साल बदलते जाएगे
डटकर कदम बढ़ाना है
सोना तो है सबको एक दिन
जीते जी कुछ ऐसा कर जाना है
जब जाये अंतिम यात्रा पर
जीत हो आपके चरणों में 
गिरते गिरते उठ जाना है..............


                                      :-  सार्थक मिश्रा 
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