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    बड़ा कठिन है !

    देश के वर्तमान हालात पर विशेष__

    बड़ा कठिन है _
    घोर विसंगतियों मे हमको,
    अब मुसकाना बड़ा कठिन है।
    षड्यंत्रों के चक्रव्यूह से,
    मार्ग बनाना बड़ा कठिन है।।

    तथ्य हीन अफवाहों का कुछ,
     दौर इस तरह निकल पड़ा है।
    मानो ज्वालामुखी उबलकर,
    गली_गली मे फूट पड़ा है।।
    किस_किस को किस तरह कौन, क्या,
     क्या, क्या_क्या लोग नही कहते हैं?
    पर सत राह पकड़ने वाले,
    पथ से विमुख नहीं चलते हैं।।

    तर्को के इस भवर जाल से,
    सच निकालना बड़ा कठिन है।
    षड्यंत्रों के चक्रव्यूह से,
    मार्ग बनाना बड़ा कठिन है।।

    अपने वतन मे, अपनो से ही,
    अपनी बात नहीं कह पाते।
    अपनो का अपना पन देखो,
    अपने घर मे सेंध लगाते।।
    काश्मीर, केरल, त्रिपुरा मे,
    ध्वज विदेश के लहराते हैं।
    रहते_खाते भारत में पर,
    विदेशियों के गुण गाते हैं।।

    आस्तीन के इन सापो से,
    बच पाना भी बड़ा कठिन है।
    षड्यंत्रों के चक्रव्यूह से,
    मार्ग बनाना बड़ा कठिन है।।

    दृष्टि जहां पर हमने डाली,
    वही गली वीरान दिख रही।
    कहीं खंडहर, कहीं मरुस्थल,
    आम गली सुनसान दिख रही।।
    संप्रदाय का जहर कहीं,
    आक्रोश निराशा का दिखता है।
    असह बुढ़ापा, घायल यौवन,
    मंगल_ घट, खाली दिखता है।।

    ऐसी विकट परिस्थितियों मे,
    जी बहलाना बड़ा कठिन है।
    षड्यंत्रों के चक्रव्यूह से,
    मार्ग बनाना बड़ा कठिन है।।

    उग्रवाद, आतंकवाद ने,
    उत्तर, पूर्वांचल विखराया।
    झारखंड, आंध्रा, छत्तिसगढ़,
    नक्सल की चपेट मे आया।।
    देश द्रोह की चिंगारी से,
    असम जला, बंगाल जल रहा।
    उल्टे_सीधे कानूनों से,
    सारा हिन्दुस्तान जल रहा।।

    ऐसे मातृ _घातियो को अब,
    समझाना भी बड़ा कठिन है।
    षड्यंत्रों के चक्रव्यूह से,
    मार्ग बनाना बड़ा कठिन है।।

    एक बार इस दानवता से,
    पुनः मनुजता अकुलायी है।
    जगह_जगह दु:शासन फैले,
    द्रोपदिया भी घबड़ाई हैं।।
    अर्जुन भी दिखते हैं लेकिन,
    विमुख हुए हैं कर्तव्यों से।
    नहीं भान है उन्हे समय की,
    मांगों से या मंतब्यो से।।

    कर्म योग हित फिर गीता का,
    ज्ञान सुनाना बड़ा कठिन है।
    षड्यंत्रों के चक्रव्यूह से,
    मार्ग बनाना बड़ा कठिन है।।

    वोट बैंक की कुटिल चाल से,
    जकड़ा लोकतंत्र है सारा।
    आडंबर के चमत्कार से,
    दूषित सारा कर्म हमारा।।
    उठो देश _दुनिया की सारी,
    गरिमा तुम्हे बढ़ानी है अब।
    अंगारों पर चढ़ी राख की,
    परते तुम्हें हटानी है अब।।

    नहीं जगे तो फिर अपनी,
    पहचान बचाना बड़ा कठिन है।
    षड्यंत्रों के चक्रव्यूह से,
    मार्ग बनाना बड़ा कठिन है।।

                          :-डा शिव शरण श्रीवास्तव "अमल "

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