"ईश्वर को बुरा न कहें कि 'उसने आपको यह नहीं दिया, वह नहीं दिया'. बल्कि ईश्वर का धन्यवाद करें, कि उसने आपको बहुत कुछ दिया है।"
बहुत से लोगों को ईश्वर से यह शिकायत रहती है, कि "हे ईश्वर! आपने हमें बेटा नहीं दिया, संपत्ति नहीं दी, मकान अच्छा नहीं दिया, कार अच्छी नहीं दी, खाना-पीना भोजन वस्त्र सोना चांदी इत्यादि संपत्तियां नहीं दी।" इस प्रकार की शिकायतें प्रायः लोग करते रहते हैं। "ईश्वर पर इस प्रकार के दोष या आरोप लगाना अनुचित है।"क्योंकि इस प्रकार के आरोप उस व्यक्ति पर लगाए जा सकते हैं, जिसने किसी के साथ अन्याय किया हो। ईश्वर अन्यायकारी तो है नहीं। इसलिए ईश्वर पर ऐसे आरोप नहीं लगाने चाहिएं।
बल्कि ईश्वर ने तो आपको बहुत सी संपत्तियां दी हैं। "शरीर मन बुद्धि इंद्रियां भोजन वस्त्र मकान माता पिता गुरुजन आचार्य सब प्रकार के खाने पीने के साधन खनिज पदार्थ पेट्रोलियम पदार्थ पृथ्वी जल अग्नि वायु आकाश आदि पंचमहाभूत और चार वेदों की विद्या। इतना सब कुछ ईश्वर ने आपको दिया है, फिर भी आप ईश्वर से शिकायत कर रहे हैं?" "अगर आप में थोड़ी भी बुद्धिमत्ता और ईमानदारी हो, तो आपको ईश्वर का धन्यवाद करना चाहिए, कि ईश्वर ने इतनी सारी सुविधाएं आपको दी, और इसके बदले में कोई फीस भी आप से वसूल नहीं की।"
यदि आपने पहले अच्छे कर्म किए होते, और ईश्वर आपके अच्छे कर्मों का फल आप को न देता, तब तो वह दोषी बनता था। तब उस पर आप इस प्रकार के दोष अथवा आरोप लगा सकते थे।
परंतु जब ईश्वर ने ये शरीर मन बुद्धि अच्छे मकान मोटर गाड़ी आदि संपत्तियां अन्य लोगों को दी हैं, तो वह आपको भी दे सकता था। फिर भी ईश्वर ने आपको क्यों नहीं दी? "इससे सिद्ध होता है कि आपने उस प्रकार के कर्म नहीं किए, जिस प्रकार के कर्म अन्य लोगों ने किए। उनके कर्मों के फलस्वरुप ईश्वर ने उन्हें ये सब संपत्तियां दी हैं, कोई पक्षपात नहीं किया।"
"यदि ईश्वर ने आपको वैसी संपत्तियां नहीं दी, तो इसका अर्थ है कि आप के कर्म में कहीं कमी है।"अथवा "ईश्वर अन्यायकारी है, कि जिसको मन चाहे दे देता है, और जिस को न चाहे, उसे वह नहीं देता। क्या ऐसा संसार के लोग स्वीकार कर पाएंगे कि 'ईश्वर अन्यायकारी है.' संसार के बुद्धिमान लोग तो कभी ऐसा स्वीकार नहीं करेंगे।"
फिर भी यदि आप जैसे अज्ञानी लोग इस बात पर अड़े रहें, और इस झूठी बात का प्रचार करें, 'कि ईश्वर अन्यायकारी है।' तो भी आप ईश्वर का क्या बिगाड़ लेंगे? क्या ईश्वर को दंड देकर ठीक कर सकते हैं? उसे वापस न्यायकारी बना सकते हैं? यदि नहीं बना सकते, तो फालतू शोर करने का कोई अर्थ नहीं है! *"ऐसा करके व्यर्थ में आप संसार में अपनी खिल्ली या मजाक उड़वाएंगे। बुद्धिमान लोग आपको ही मूर्ख कहेंगे। इसलिए ईश्वर पर ऐसे झूठे आरोप लगाना या उसे अन्यायकारी कहना, कोई बुद्धिमत्ता नहीं है, बल्कि मूर्खता ही है।"
"कभी कभी आपके कुछ काम बिगड़ जाते हैं। उनका दोषी ईश्वर नहीं है, संसार के दूसरे लोग हैं, जो आपसे राग द्वेष रखते हैं। आपके साथ अन्याय करते हैं, आपको परेशान करते हैं। जाने/अनजाने में आप के कामों में बाधाएं डालते हैं। उन द्वारा की गई, आपकी हानियों के दोषी, संसार के वे दुष्ट और स्वार्थी लोग हैं, ईश्वर नहीं।"
"इसलिए जो भी आपके कर्म फल में कमी आ रही है, उसके दोषी आप स्वयं को मानें। और जिन दूसरे लोगों ने आप की हानियां की हैं, उनके दोषी अन्य लोगों को मानें। कभी-कभी पशु पक्षी भी हानियां कर देते हैं, जैसे खेतों में फसल नष्ट कर देते हैं। और कहीं कहीं प्राकृतिक दुर्घटनाओं भूकंप आंधी तूफान आदि से भी नुकसान होते हैं। इन सब का दोषी ईश्वर बिल्कुल नहीं है।"
"ये सब हानियां दूसरे लोगों और प्राकृतिक दुर्घटनाओं के कारण होती हैं। अतः इन हानियों के बदले में ईश्वर को गाली न दें। उस पर आरोप न लगाएं। अन्यथा यह भी आपका एक नया अपराध होगा, और इसके फलस्वरूप ईश्वर आप को खूब दंडित करेगा। अतः सोच समझकर बोलें।

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