कोई परिणाम नहीं मिला

    परिस्थितियों के अनुकूल बनिये

    परिस्थितियों की अनुकूलता की प्रतिज्ञा करते-2 मूल उद्देश्य दूर पड़ा रह जाता है। हमें जीवन में जो कष्ट है, जो हमारा लक्ष्य है, उसे हम परिस्थिति के प्रपंच में पड़ कर विस्मृत कर रहे हैं।

    यदि आपके पास कीमती फाउन्टेन पेन नहीं है, बढ़िया कागज और फर्नीचर नहीं है, तो क्या आप कुछ न लिखेंगे? यदि उत्तम वस्त्र नहीं हैं, तो क्या उन्नति नहीं करेंगे? यदि घर में बच्चों ने चीजें अस्त-व्यस्त कर दी हैं, या झाडू नहीं लगा है, तो क्या आप क्रोध में अपनी शक्तियों का अपव्यय करेंगे? यदि आपकी पत्नी के पास उत्तम आभूषण नहीं हैं, तो क्या वे असुन्दर कहलायेंगी या घरेलू शान्ति भंग करेंगी? यदि आपके घर के इर्द-गिर्द शोर होता है, तो क्या आप कुछ भी न करेंगे? यदि सब्जी, भोजन, दूध इत्यादि ऊंचे स्टैन्डर्ड का नहीं बना है, तो क्या आप बच्चों की तरह आवेश में भर जायेंगे? नहीं, आपको ऐसा कदापि न करना चाहिए।

    परिस्थितियाँ मनुष्य के अपने हाथ की बात है। मन के सामर्थ्य एवं आन्तरिक स्वावलम्बन द्वारा हम उन्हें विनिर्मित करने वाले हैं। हम जैसा चाहें जब चाहें सदैव कर सकते हैं। कोई भी अड़चन हमारे मार्ग में नहीं आ सकती। मन की आन्तरिक सामर्थ्य के सम्मुख प्रतिकूलता बाधक नहीं हो सकती।

    सदा जीतने वाला पुरुषार्थी वह है जो सामर्थ्य के अनुसार परिस्थितियों को बदलता है। किन्तु यदि वे बदलती नहीं, तो स्वयं अपने आपको उन्हीं के अनुसार बदल लेता है। कठिन से कठिन परिस्थितियों में उसकी मनः शान्ति और संतुलन स्थिर रहता है। विषम परिस्थितियों के साथ वह अपने आपको फिट करता चलता है।

    निराश न होइए यदि आपके पास बढ़िया मकान, उत्तम वस्त्र, टीपटाप, ऐश्वर्य इत्यादि वस्तुएँ नहीं हैं। ये आपकी उन्नति में बाधक नहीं हैं। उन्नति की मूल वस्तु-महत्वाकाँक्षा है। न जाने मन के किस अतल गह्वर में यह अमूल्य सम्पदा लिपटी पड़ी हो किन्तु आप गह्वर में है अवश्य। आत्म-परीक्षा कीजिये और इसे खोजकर निकालिये।

    प्रतिकूल परिस्थितियों से परेशान न होकर उनके अनुकूल बनिये और फिर धीरे-2 उन्हें बदल डालिये।

    एक टिप्पणी भेजें

    Thank You for giving your important feedback & precious time! 😊

    और नया पुराने

    संपर्क फ़ॉर्म