धोती छूटी, लुंगी छूटी,
छूट गवा पैजामा,
जींस चढाए बुढवा टहरंय,
पापा, मौसा, मामा..
खूंटी अरगन पै परा कहूँ,
कुर्ता जोन सियाए,
नवा नवा टी शर्ट खरीदें,
घूमि रहे लहकाए.
आंखन पै चश्मा इस्टाइलिस,
पीछे जेबी मा बटुआ,
केहू कबो टोंकय उनका तौ,
बोलैं हमसे सीखा बेटवा..
चेहरे पै मोदी कट दाढ़ी,
और आधी बाहीं कै कुर्ता,
लउंडय के देखिके बरि जांय,
उनके लागय जैसे मिर्चा...
गलतिव से गलती कइ के तू,
बुढ़ऊ उनका जिन बोला,
परी भनक काने उनके तौ,
तोहार सात पुस्त गयें तोला..
हाफ पैंट बरमूडा पहिरे,
घूमि रहे खेते बारी,
गुड मॉर्निंग जबाब देहें,
जौ पैलगी केहें तेवारी..
मैक्सी पहिरे घूमंय दादी,
नाती बैठ खेलावंय,
गिरीं अटकि के एक दिन देखा,
पतवह से मिंजवावंय..
ई सब रहा शहर मा पहिले,
अब गांवौ मा सचरा,
पारंपरिक पुरान पहनावा,
सब होइगें अब कचरा..
हंसी हंसी बात ई देखा,
गंभीर होइ गयी काफी,
कुछू केहू का बुरा जौ लागय,
राजू का दइदो माफी..
आजव अथाह भंडार ज्ञान के,
समेटे बैठा बुढ़ऊ,
इज्जत और सम्मान गाँव के,
लपेटे बैठा बुढ़ऊ..
रचयिता
राजू पाण्डेय बहेलियापुर
धन्यवाद टीम कंटेंट लेखक ❤️
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