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    मातृदिवस की अहमियत


                   
                  
           मातृदिवस की अहमियत
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    मां होती ममतामई, अपने रक्त से तुझे बनाती है।
    अपने छाती से दूध पिला, सब कष्ट उठा तुझे पालती है।।
    किस कष्ट से मां ने तुझे पाला, आज तूने यह जान लिया।
    मां ही असली भगवान है, यह भी तुमने अब मान लिया।।
    फिर अब तो घर- घर में बूढ़ी मांएं, देवी जी पूजी जाएगी।
    अपने जिगर के टुकड़े से बिछुड़, बृद्धाश्रम तो न जाएगी।।
    बेटा,बेटी,बहू सभी ,मां को तो न अब दुत्कारेंगे।
    मन मंदिर में ईश्वरीय रूप में, मां की मूर्ति तो बसाएंगे।।
    फिर तो कहो अब न पड़ेगी, जरूरत वृद्धाश्रम की।
    या फिर मां को घर में बसा, पिता को वृद्धाश्रम पहुंचाओगे।।
    अरे मूढ़ मानव! संभल जाओ, माता-पिता को न अलग करो।
    अपनी भी कुछ याद करके, माता-पिता की घर पर सेवा करो।।
    सिर्फ एक दिवस नहीं है कुछ भी, पूजा करो उनकी हर दिन।
    संकट सारे टल जाएंगे, हर दिन तेरा होगा शुभ दिन।।
    प्रण करो कि अब न तुम, वृद्धाश्रम कभी बनवाओगे।
    अपने बूढ़े माता-पिता को कभी वृद्धाश्रम नहीं पहुंचाओगे।।
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    -मुकेश कुमार दुबे "दुर्लभ"
    ( शिक्षक सह साहित्यकार)

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