बचपन
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खेल हुए आंगन से गायब बचपन बचपन नहीं रहा
बोझ किताबों का कांधे पे लेकर बचपन जूझ रहा।
फुरसत नहीं प्यार पाने की जुर्रत नहीं है मस्ताने की
रूठा बचपन कौन मनाए क्या उमर नही इठलाने की।
डॉक्टरऔर वकील बने ये बच्चों की कोई चाह नहीं
खुद की मर्जी थोपते हैं ये खुद की चुनते राह नहीं।
बचपन का वो गाना बजाना रूठना मनना और मनाना
सबकुछ गायब हो गया अब बचपन का मतलब क्या जाना।
तितली बनकर उड़ते थे सब लड़ते और झगड़ते थे सब
कोई खौफ नहीं था मन में प्यार से हिलते मिलते थे सब।,,,,,
- गोपी साजन