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    स्त्री और पुरुष मिलकर कर सकते हैं राष्ट्र का विकास

    एक दिन औरत का दिन होगा 
    एक दिन वह खिलाएगी दूध से सनी रोटियां 
    दुनिया के सारे बच्चों को 
    उसकी हसी में होगी सिर्फ हसी और कुछ नहीं होगा 
    वह स्थगित कर देगी सारा युद्ध, सारे धर्म 
    वह एतबार का पाठ पढ़ायेंगी
    प्राचीन काल से ही (जब से पशुधन से सम्पत्ति संग्रह का प्रचलन हुआ) पितृसत्ता का जोर चला आ रहा है हालांकि प्रारंभिक मानव समाज मातृसत्तातमक था उसके प्रयाप्त साक्ष्य जगह जगह मिलते रहते हैं समाज, धर्म, अर्थिक व्यवहार,राजनीति; हर सम्भव भूमिकाओं में स्त्री को हटाकर उसे घर परिवार व प्रजनन तक सीमित रखने की कोशिश चलती रहीं हैं समय समय पर इसके अपवाद भी मिलते रहे हैं पर विभिन्न काल खण्डों में कोई स्वर्ण युग स्त्री का भी है ऐसा उल्लेख नहीं मिलता आधुनिक काल में जाकर हम इस आपराधिक जड़ता को तोड़ने की कोशिश शुरू हुई स्त्री पुरुष असमानता और लिंग भेद के समापन का विचार एक आधुनिक विचार है ओलिम्प डी गाउसेज(olympee de gouges)
    ने मनुष्य और नागरिक के अधिकारों की घोषणा की तर्ज़ पर 'स्त्रियां और स्त्री नागरिको के अधिकारों की घोषणा तैयार की ,जिसका प्रकाशन 1791 में हुआ और उसे फ्रांस की राष्ट्रीय असेंबली के सक्षम प्रस्तुत भी किया गया परंतु कुछ खास प्रगति नहीं हो पायी इस दौरान मे स्त्री आंदोलन की सबसे महत्त्वपूर्ण दस्तावेज mary wollstonecraft की पुस्तक 'स्त्री अधिकारों का प्रतिपालन' है जिसका प्रकाशन 1792 में हुआ इसे स्त्री विमर्श और उसके सरोकारों की बहुत महत्त्वपूर्ण पहल माना जाता है जुलाई 1948 me न्यूयार्क मे एलिजाबेथ कैडी स्टेशन और lucretia mott की अगुआई में पहला स्त्री अधिकार सम्मेलन हुआ जिसमें उन्होंने स्त्री के लिए मताधिकार सहित पूर्ण कानूनी समानता, पूर्ण शिक्षा और व्यावसायिक अवसर समान मजदूरी और समान मुआवजा की माग उठाई फिर य़ह आंदोलन तेजी से यूरोप जा पहुचा और आज य़ह काफी अच्छी स्थिति में आ पहुचा है फिर भी ऐसा बहुत कुछ है जो किया जाना शेष है, क्योंकि अभी भी विकास की प्रक्रिया में स्त्री और पुरुष सरोकारों को समान स्थान प्राप्त नहीं है तथा दुनिया में ऐसे तमाम जगह है जहा अभी भी औरतों को पुरुष के अधीनस्थ की तरह रखने पर जोर दिया जाता है दोनों के बीच भेदभाव किया जाता है यह भेदभाव सामाजिक, शिक्षा, अर्थिक, पारिवारिक, धार्मिक संस्कृतिक तथा राजनीतिक , हर स्तर पर होता है जब तक इस तरह का भेदभाव होता रहेगा तब तक विकास संकटग्रस्त रहेगा 
    एक प्रश्न यह भी उठाया जाता है कि क्या विकास के सन्दर्भ में स्त्री पुरुष के सरोकार में कुछ भिन्नता होती भी है या नहीं?या फिर मामला केवल सशक्तिकरण का ही है?सामन्य तौर पर तो यही लगता है कि विकास के सभी उपदान की स्त्री पुरुष दोनों को जरूरत है वयवस्था या तंत्र को बस यह देखना है कि वह लिंग भेद नहीं करे शिक्षा स्वास्थ भोजन रोजगार सुरक्षा आवास आदि स्त्री पुरुष दोनों की आवश्यकता है फिर अलग सरोकार की बात कहा से आई?एक सामान्य प्रश्न उठ सकता है पर वास्तव में यह मुद्दे का सरलीकरण होगा स्त्री और पुरुष की शारीरिक और सामाजिक स्थिति में काफी फर्क़ है स्त्री को हर महीने माहवारी होती है, उसे 9 महीने गर्भ धारण करना होता है वह रात में अकेले होने की स्थिति में तथा अनजान जगह पर असुरक्षित महसूस करती हैं अतः स्त्री को लिंग समानता के साथ लिंग विशिष्ट को भी अपने सरोकार में शामिल कराने की जथोजहद करनी पड़ी 
                                       - puja rauth

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