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    आलस्य : मनुष्य का शत्रु


    अलसस्य कुतो विद्या अविद्यस्य कुतो धनम्।
    अधनस्य कुतो मित्रम् अमित्रस्य कुतो सुखम् ॥

    प्रस्तुत श्लोक में कहा गया है कि आलस्य करने वाले को शिक्षा कैसे प्राप्त होगी? जो आलस्य करता है उसे विद्या नहीं मिलती, और जिसके पास विद्या नहीं है उसके पास धन कहां?
    जिसके पास धन नहीं है, अर्थात जो निर्धन है उसके पास मित्र कहां ? निर्धन व्यक्ति मित्र हीन रह जाता है और जिसका कोई मित्र न हो, उसे अमित्र को भला सुख कहाँ?
    इस श्लोक से हमें यह शिक्षा मिलती है कि विद्या ही मनुष्य के जीवन में सभी सुखों की प्राप्ति एवं सफलता का आधार है। किंतु विद्या केवल उसी को मिलती है, जो आलस्य का त्याग कर कठोर श्रम करता है।
    आलस्य करने वाला मनुष्य जीवन में हर प्रकार के सुख से वंचित रह जाता है। आलस्य का त्याग कर ही विद्या प्राप्ति संभव है। विद्या का प्रयोग कर ही व्यक्ति धन का संचय कर पाता है। धन - संपदा होने पर ही मित्र बनते हैं और मित्रों द्वारा ही व्यक्ति जीवन में सुख पाता है।
    अतः आलस्य का त्याग करना अवश्यंभावी रूप से आवश्यक है, अन्यथा हमारा जीवन दुख, कठिनाई एवं कष्टों से भर जाता है 
    आलस्य मनुष्य का सबसे बड़ा शत्रु होता है क्योंकि आलस्य मनुष्य को कभी भी जीवन में उन्नति नहीं करने देता है। आलस्य मनुष्य को इतना निकम्मा बना देता है कि उसे परिश्रम से घृणा हो जाती है और वह सदैव आराम की अवस्था में ही रहना चाहता है। आलस्य आलसी मनुष्य को अत्यंत ही प्रिय लगता है क्योंकि आलस्य का असली रूप देखने के लिए परिश्रमी रूपी चश्मे की आवश्यकता होती है जो आलसी मनुष्य के पास नहीं होता है। आलसी मनुष्य को आलस्य दिन प्रतिदिन अपनी चपेट में लेता जाता है, जिसके फलस्वरूप वह दिन प्रतिदिन परिश्रम से दूर भागने लगता है।
    आलस्य नामक शत्रु को समाप्त केवल परिश्रम नामक मित्र ही कर सकता है। इसके अलावा इसे समाप्त करने का अन्य कोई दूसरा मार्ग नहीं है। परिश्रम से मित्रता करने के पश्चात ये शत्रु अपने आप ही समाप्त हो जाता है। परिश्रम ही सफलता की कुंजी है, यह बात केवल परिश्रमी व्यक्ति ही समझ सकता है क्योंकि वह परिश्रम की अहमियत अच्छे से जानता है। उसे यह ज्ञात होता है कि परिश्रम ही उसका सच्चा मित्र है और इस मित्र की सहायता से वह अपने जीवन में सदैव उन्नति ही करेगा। 
     आलस्य हमारी इच्छाशक्ति को, संकल्प-शक्ति को शिथिल बनाता है। सोने से पूर्व हम संकल्प करते हैं कि प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठ जायेंगे, घड़ी में अलार्म भी लगा देते हैं पर आलर्म की घंटी बजकर शान्त हो जाती है और हम करवट लेकर, कुनमुना कर पुनः सो जाते हैं। संकल्प धरा का धरा जाता है। आलसी व्यक्ति में न आत्मबल होता है, न आत्मविश्वास। वह भग्यवादी बन जाता है। अपने दोषों, अपनी त्रुटियों को उत्तरदायी न मानकर अपने कष्टों के लिए भाग्य, प्रारब्ध, नियति, विधि, माथे या हाथ की रेखाओं को दोष देता है 
                                          - Aanchal sharma

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