ज्यों-ज्यों विस्तार से किया जाएगा, भूगोल का यह प्रभाव अधिक स्पष्ट होता
पाठकों की सुविधा के लिए भूगोल के कुछ प्रमुख प्रभावों को नीचे दिया जा रहा है
(1) विभिन्न क्षेत्रों में विभाजन का प्रभाव-
भारत भौगोलिक दृष्टि से अनेक क्षेत्रों में विभाजित है इसका कारण इसकी विशालता
है। ये भौगोलिक क्षेत्र एक-दूसरे से भिन्न हैं। इस प्रकार भौगोलिक दृष्टि से
भिन्न क्षेत्रों ने राजनैतिक व सामाजिक दृष्टि से भी भिन्नता स्थापित करने में
सहायता दी है। विभिन्न क्षेत्रों में राजनैतिक सत्ताएँ स्थापित हुई हैं और
भारत राजनैतिक दृष्टि से विभाजित दिखाई देता रहा है किन्तु भारत की सीमाएँ
बड़ी दृढ़ रही हैं और प्रत्येक राजनैतिक इकाई में भारतीय संस्कृति के विकास का
ही प्रयास किया गया है। अतः इन विभिन्न क्षेत्रों का कोई विशेष उल्टा प्रभाव
भारत के जीवन पर नहीं पड़ा और न ही भारतीय जनता के मन पर, चाहे यह किसी भी
क्षेत्र में निवास करती है। भारत की एकता का प्रभाव सदा अंकित रहा है और
सम्पूर्ण भारतीय प्रदेश में भारतीय संस्कृति का प्रसार हुआ है।
( 2 ) सांस्कृतिक एकता
भारत जैसे विशाल देश में जो भौगोलिक दृष्टि से विभिन्न क्षेत्रों में बँटा हुआ
है, सांस्कृतिक एकता की स्थापना यहाँ की अपनी विशेषता है। यहाँ की जनता
आध्यात्मवादी है। धर्म के क्षेत्र में सभी को स्वतन्त्रता प्राप्त होना, कुछ
सनातन सत्य सिद्धान्तों में विश्वास करना तथा मनुष्य को पशुत्व से ऊपर उठाकर
सच्चा मानव बनाना, यहाँ की संस्कृति की विशेषता है और यह विशेषता सारे देश में
एक समान पाई जाती है। इस प्रकार भारत प्राकृतिक दृष्टि से एक सम्पूर्ण भू-खण्ड
है। इस सांस्कृतिक एकता ने भारतीय इतिहास को सदा प्रभावित किया है।
(3) प्राकृतिक विभागों का विशेष प्रभाव
भारत के प्रत्येक प्राकृतिक विभाग ने इस क्षेत्र के साथ-साथ सम्पूर्ण भारत के
इतिहास को प्रभावित किया है। जैसे राजस्थान का मरुस्थल-गंगा व सिन्ध के
मैदानों को पृथक् करता है। इस मरुस्थल के कारण विदेशी आक्रमणकारी एक मैदान से
दूसरे में न जा सके और वे सदा उत्तर की ओर ही बढ़े, परिणामस्वरूप दिल्ली का
महत्त्व सदा बना रहा। पंजाब ने अपनी भौगोलिक स्थिति के कारण भारत के प्रहरी व
रक्षक के रूप में कार्य किया है। दक्षिण का क्षेत्र विदेशी आक्रमणकारियों से
अछूता रहा। मराठों ने अपने क्षेत्र की विशेष स्थिति के कारण भारतीय इतिहास में
अपना विशेष स्थान बनाया।
(4) आध्यात्मिक उन्नति
भारतीय जनता के जीवन की आवश्यकताओं की पूर्ति सुगमता से हो जाने के कारण यहाँ
आध्यात्मिक क्षेत्र में उन्नति करने का प्रयास किया गया। भौतिकता को उन्होंने
हेय माना, गुरु की प्राप्ति का प्रयास किया। हिमालय पर्वत की घाटियों में
एकान्तवासी जीवन व्यतीत करते हुए आध्यात्मिक क्षेत्र में प्रगति करने का
प्रयास भारत के लोगों ने किया। इस आध्यात्मिक दृष्टिकोण ने भारतीय इतिहास को
बहुत प्रभावित किया। भारतीय राजनीतिक आध्यात्मिक आधारों पर प्रतिभा रही, अतः
वह कल्याणकारी सिद्ध हुई।
( 5 ) साम्राज्यवाद का विरोध
आध्यात्मिकवादी होने के कारण भारतीय साम्राज्यवादी विरोधी रहे हैं। भारत के
सम्राट भारतीय सीमाओं तक सन्तुष्ट रहे हैं। यद्यपि भारतवासियों ने संसार के
विभिन्न क्षेत्रों में जाकर उपनिवेश स्थापित किए किन्तु उनके मन में कभी भी
साम्राज्यवाद की भावना का उदय नहीं हुआ। वे शरीर के स्थान पर व्यक्ति के मन व
हृदय को जीतना चाहते थे, अतः भारतवासियों ने सांस्कृतिक विजय प्राप्त की व
सांस्कृतिक साम्राज्य स्थापित किया और भारत जगत गुरु कहलाया।
( 6 ) भौतिक क्षेत्र में विशेष उन्नति
एक ओर जहाँ भारत की भौगोलिक स्थिति ने यहां आध्यात्मिकता के गुणों के विकास
को सहायता दी, वहाँ इसी भौगोलिक व प्राकृतिक स्थिति ने भौतिक क्षेत्र में
उन्नति का भरपूर अवसर दिया। भारत ने कृषि, कला-कौशल औद्योगिक उत्पादन व
वैज्ञानिक आविष्कारों के क्षेत्र में इतनी प्रगति की कि यहाँ के निवासी संसार
भर में अपनी समृद्धि के लिए प्रसिद्ध हो गए और भारत 'सोने की चिड़िया' कहलाने
लगा। अनेक विदेशी आक्रमणकारियों ने इस समृद्धि से आकर्षित होकर भारत पर आक्रमण
किए।
(7) विश्व से अलग-थलग होना
साम्राज्यवाद की भावना के विरोध के कारण तथा भारतीय सम्राटों के भारत भूमि तक
सीमित रहने में सन्तोष अनुभव करने के कारण भारतवर्ष का विश्व के विभिन्न
क्षेत्रों से सम्पर्क न रह सका परिणामस्वरूप वह अलग-थलग पड़ गया। भारत की
प्राकृतिक निश्चित सीमाओं ने भारतवासियों के मन में अपने देश तक सीमित रहने की
भावना को दृढ़ किया, अत: विश्व में होने वाले परिवर्तनों से भारत अनभिज्ञ रहा।
इसके अनेक दुष्परिणाम हुए। संसार में होने वाली विभिन्न क्षेत्रों की उन्नति व
प्रगति से भारत अछूता रहा और जब विदेशी आक्रमणकारियों से उसका वास्ता पड़ा तो
उसने अपने को समय पिछड़ा हुआ पाया।
अंकिता यादव
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