मौर्य राज वंश ('322-185 ईसा पूर्व ')प्राचीन
भारत के इतिहास में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। चंद्रगुप्त
मौर्य, चाणक्य, बिन्दुसार तथा सम्राट अशोक आदि जैसे महान राजा मौर्य वंश में
युद्धों में व्यस्त थीं। मध्य प्रदेश और बिहार में नंद वंश का राजा धननंद शासन
कर रहा था। सिकन्दर के आक्रमण से देश के लिए संकट पैदा हो गया था। मगध के
शासक के पास विशाल सेना अवश्य थी, किन्तु जनता का सहयोग उसे प्राप्त नहीं था।
प्रजा उसके अत्याचारों से पीड़ित थी। असह्य कर-भार के कारण राज्य के लोग उससे
असंतुष्ट थे। देश को इस समय एक ऐसे व्यक्ति की आवश्यकता थी, जो मगध
साम्राज्य की रक्षा तथा वृद्धि कर सके। विदेशी आक्रमण से उत्पन्न संकट को दूर
करे और देश के विभिन्न भागों को एक शासन-सूत्र में बाँधकर चक्रवर्ती सम्राट के
आदर्श को चरितार्थ करे। शीघ्र ही राजनीतिक मंच पर एक ऐसा व्यक्ति प्रकट भी
हुआ। इस व्यक्ति का नाम था- 'चंद्रगुप्त'। जस्टिन आदि यूनानी विद्वानों ने
इसे 'सेन्ड्रोकोट्टस' कहा है। विलियम जॉन्स पहले विद्वान् थे, जिन्होंने
सेन्ड्रोकोट्टस' की पहचान भारतीय ग्रंथों के 'चंद्रगुप्त' से की है। यह
पहचान भारतीय इतिहास के तिथिक्रम की आधारशिला बन गई है।
मौर्ययुगीन पुरातात्विक संस्कृति में उत्तरी काली पॉलिश के मृदभांडों की जिस
संस्कृति का प्रादुर्भाव महात्मा बुद्ध के काल में हुआ था, वह मौर्य युग में
अपनी चरम सीमा पर दृष्टिगोचर होती है। इस संस्कृति का विवरण उत्तर, उत्तर
पश्चिम, पूर्व एवं दक्कन के विहंगम क्षेत्र में प्रसार हो चुका था।
चक्रवर्ती सम्राट चन्द्र गुप्त मौर्य (शासनकाल: 322 से 298 ई. पू.तक) की
गणना भारत के महानतम शासकों में की जाती है। उसकी महानता की सूचक अनेक
उपाधियाँ हैं और उसकी महानता कई बातों में अद्वितीय भी है। वह भारत के प्रथम
‘ऐतिहासिक’ सम्राट के रूप में हमारे सामने आता है, इस अर्थ में कि वह भारतीय
इतिहास का पहला सम्राट है जिसकी ऐतिहासिकता प्रमाणित कालक्रम के ठोस आधार पर
सिद्ध की जा सकती है।
चंद्रगुप्त मौर्य का जन्म लगभग 340 ईसा पूर्व में हुआ था। चंद्रगुप्त की
उत्पत्ति को विभिन्न तरीकों से संदर्भित किया गया है। कुछ लोगों के अनुसार
उनका जीवन बिहार के मगध के नंद राजवंश से जुड़ा हुआ है। जबकि बौद्ध ग्रंथों
में उनका वर्णन "मोरिया" नामक खट्टी वंश के एक खंड के रूप में वर्णित किया गया
है। इनकी माता का नाम मुरा था। यह भी माना जाता है कि मौर्य शब्द उनकी माँ
मुरा के नाम से लिया गया। पुराणों में वर्णित के अनुसार, चंद्रगुप्त मौर्य ने
24 वर्षों तक शासन किया। इसके बाद उनके बेटे बिंदुसार ने 25 साल तक शासन किया।
274 ईसा पूर्व में बिन्दुसार की गद्दी अशोक ने संभाली, जो एक सफल शासक हुआ।
चाणक्य ने चंद्रगुप्त को राजनीति और युद्ध कौशल के विभिन्न पाठ सिखाए थे।
चाणक्य या कौटिल्य एक महान विद्वान थे, जो प्राचीन तक्षशिला विश्वविद्यालय में
अर्थशास्त्र और राजनीति विज्ञान के शिक्षक थे। उसके बाद चाणक्य चंद्रगुप्त
मौर्य के गुरु बने। चंद्रगुप्त मौर्य ने नंद वंश के शासक धनानंद को हराकर
मौर्य साम्राज्य की स्थापना की थी।
चन्द्रगुप्त मौर्य उस चेतना का एक अंश है। जिसका प्रकाश आज भी हमें मुसीबतों
और कष्टों में जीवट के साथ जीवन जीना सिखाता है।हिमगियों से भी ऊंचे अरमानों
को लेकर चलना, झंझावातों का साहस के साथ मुकाबला करना, दुःख को अपना साथी
बनाना, अपनेपन तथा अपमान से मुक्त होना, इसी का नाम चन्द्रगुप्त मौर्य है।
चंद्रगुप्त मौर्य जैन धर्म की ओर ज्यादा झुकाव हो चला था। वे अपने अंतिम समय
में अपने पुत्र बिंदुसार को राजपाट सौंपकर जैनाचार्य भद्रबाहू से दीक्षा लेकर
उनके साथ श्रवणबेलागोला (मैसूर के पास) चले गए थे। तथा चंद्रगिरी पहाड़ी पर
काया क्लेश द्वारा 297 ईसा पूर्व अपने प्राण त्याग दिए थे।
- khushi kumari
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