कोई परिणाम नहीं मिला

    साहित्य और जीवन

    साहित्य समाज का दर्पण है । एक साहित्यकार समाज की वास्तविक तस्वीर को सदैव अपने साहित्य में उतारता रहा है । मानव जीवन समाज का ही एक अंग है ।

    मनुष्य परस्पर मिलकर समाज की रचना करते हैं । इस प्रकार समाज और मानव जीवन का संबंध भी अभिन्न है । समाज और जीवन दोनों ही एक दूसरे के पूरक हैं । आदिकाल के वैदिक ग्रंथों व उपनिषदों से लेकर वर्तमान साहित्य ने मनुष्य जीवन को सदैव ही प्रभावित किया है ।

    दूसरे शब्दों में, किसी भी काल के साहित्य के अध्ययन से हम तत्कालीन मानव जीवन के रहन-सहन व अन्य गतिविधियों का सहज ही अध्ययन कर सकते हैं या उसके विषय में संपूर्ण जानकारी प्राप्त कर सकते हैं । एक अच्छा साहित्य मानव जीवन के उत्थान व चारित्रिक विकास में सदैव सहायक होता है ।

    साहित्य से उसका मस्तिष्क तो मजबूत होता ही है साथ ही साथ वह उन नैतिक गुणों को भी जीवन में उतार सकता है जो उसे महानता की ओर ले जाते हैं । यह साहित्य की ही अद्‌भुत व महान शक्ति है जिससे समय-समय पर मनुष्य के जीवन में क्रांतिकारी परिवर्तन देखने को मिलते हैं ।

    साहित्य ने मनुष्य की विचारधारा को एक नई दिशा प्रदान की है ।
    यदि हम इतिहास के पृष्ठों को पलट कर देखें तो हम पाते हैं कि साहित्यकार के क्रांतिकारी विचारों ने राजाओं-महाराजाओं को बड़ी-बड़ी विजय दिलवाई है । अनेक ऐसे राजाओं का उल्लेख मिलता है जिन्होंने स्वयं तथा अपनी सेना के मनोबल को उन्नत बनाए रखने के लिए कवियों व साहित्यकारों को विशेष रूप से अपने दरबार में नियुक्त किया था ।

    मध्यकाल में भूषण जैसे वीररस के कवियों को दरबारी संरक्षण एवं सम्मान प्राप्त था । बिहारीलाल ने अपनी कवित्व-शक्ति से विलासी महाराज को उनके कर्तव्य का भान कराया था । संस्कृत के महान साहित्यकारों कालीदास और बाणभट्‌ट को अपने राजाओं का संरक्षण प्राप्त था ।


    ” नहिं पराग नहिं मधुर मधु नहिं विकास इहिं काल । अली, कली सी सौं बँध्यो आगैं कौन हवाल ।”

    इस प्रकार हम देखते हैं कि जीवन और साहित्य को पृथक् नहीं किया जा सकता । उन्नत साहित्य जीवन को वे नैतिक मूल्य प्रदान करते हैं जो उसे उत्थान की ओर ले जाते हैं । साहित्य के विकास की कहानी वास्तविक रूप में मानव सभ्यता के विकास की ही गाथा है ।

    जब हमारा देश अंग्रेजी सत्ता का गुलाम था तब साहित्यकारों की लेखनी की ओजस्विता राष्ट्र के पूर्व गौरव और वर्तमान दुर्दशा पर केंद्रित थी । इस दृष्टि से साहित्य का महत्व वर्तमान में भी बना हुआ है । आज के साहित्यकार वर्तमान भारत की समस्याओं को अपनी रचनाओं में पर्याप्त स्थान दे रहे हैं ।

    सुधा चौरसिया

    एक टिप्पणी भेजें

    Thank You for giving your important feedback & precious time! 😊

    और नया पुराने

    संपर्क फ़ॉर्म