योग प्रचलन का विस्तृत अतीत रहा है। विश्व की प्रथम पुस्तक ऋग्वेद में विभिन्न स्थानों पर योग क्रियाओं के विषय में लेख मिलता है।
जिस तरह मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम के निशान इस भारतीय उपमहाद्वीप में जगह-जगह फैले पड़े है उसी तरह योग करने वाले तपस्वियों के चिन्ह जंगलों, गिरि- कंदराओं में आज भी देखे जा सकते है। बस जरूरत है भारत के उस स्वर्णिम इतिहास को ढुंढ निकालने की जिस पर हमें गर्व है।
माना जाता है कि योग का जन्म आर्यावर्त (इंडिया)में ही हुआ, मगर शोक का विषय यह रहा की नवीन कहे जाने वाले समय में अपनी दौड़ती-भागती जिंदगी से मनुष्यों ने योग को अपनी दैनिक जीवन से हटा लिया है। जिसका प्रभाव लोगों के स्वास्थ्य पर हुआ है । मगर आज भारत में ही नहीं विश्व भर में योग का वर्चस्व है और नि:संदेह उसका श्रेय भारत के ही योग शिक्षकों को जाता है जिन्होंने योग का फिर से पुनर्जागरण किया। स्वामी विवेकानंद जी ऐसे पहले आध्यात्मिक गुरु माने जाते हैं, जो योग को पश्चिम में लेकर गए थे। अमेरिका में सन् 1896 ई० में महर्षि पतंजलि के अष्टांग योग पर दिए गए उनके व्याख्याओं का संकलन राजयोग नामक पुस्तक में प्रकाशित हुआ। इस पुस्तक को योग के मुख्य आधुनिक ग्रंथों में से एक माना जाता है। श्री तिरुमलाई कृष्णामचार्य, बीकेएस अयंगर, परमहंस योगानन्द, और रामदेव कुछ ऐसे ही नाम हैं जिन्होंने योग अभ्यास व महत्व को पुनः से ऊचाइयों पर पहुँचाया है।
दुनिया को योग भारत ने दिया!और हमें इस पर गर्व है और आपके लेख पर भी! बहुत अच्छा 👍
जवाब देंहटाएंAwesome content
जवाब देंहटाएंKya bataun bro awesome
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