मानव जीवन में चका चौंध

सूर्य की रोशनी से ये संसार दिन में चमकता है और चांद की रोशनी से संसार रात को । पर एक और तरह की रोशनी है जिससे हम तो नही चमकते पर वो हमे अपनी तरफ चमका लेती है। आजकल मानव जीवन में बाजार एक ऐसी शक्ति पैदा हो रही है जो हर किसी को अपनी ओर आकर्षित कर रही है। पिता जी बाजार शर्ट लाने जाते है तो वो चकाचौंध देखकर पैंट भी ले आते है। माताजी अगर सब्जी लाने गई है तो साड़ी ले आती है। मतलब बाजार की चका चौंध इतनी बढ़ गई है को व्यक्ति अपनी जरूरत की चीज भूलकर बेफिजूल चीजे खरीद लाता है। और इसमें वह अपना बजट भी नही देखता बस जो चीज अच्छी लगी नही की बस उसे बटोर लो। वो काम की है या नही है यह सब तो कोई सोचता ही नही है । पर यह गलत है वैश्वीकरण के इस दौर में बाज़ार विकसित हो रहा है और होना भी चाहिए पर हमे तो अपनी जरूरतों का ध्यान रखना चाहिए। आज जहा हर जगह गांव देहात कस्बा सब जगह शॉपिंग कॉम्प्लेक्स खोले जा रहे है तो चका चौंध तो बढ़नी थी। हालांकि शॉपिंग कॉम्प्लेक्स खुलना बुरा नही है हमे एक ही छत के नीचे सभी घरेलू और बिना घरेलू चीजे उपलब्ध हो रही है पर जो हमारे लिए उपयोगी है हम उन्हे खरीदे तो न ही हमारा बजट गड़बड़ होगा ना हमारी जरूरतों में कमी आयेगी। और इन्ही मॉल और कॉपलेक्स को देख कर छोटे दुकानदार भी अपनी दुकानों का नवीनीकरण करा रहे है। और वे भी अब मॉल की तरह हर समान रख रहे है। वस्तु की पैकिंग उसका लोगो उसे सजाने का तरीका आदि सब माध्यम ग्राहकों को रिझाने में सफल साबित भी हो रहे है। पर ग्राहकों को यह सब छोड़कर आंखो में पट्टी बांध कर खरीदारी नही करनी चाहिए ध्यान रहे की आपकी आंखे खुली हो जिससे आपकी जेब सिमटी रहे ।


                                         By Vatsalya Sarthi

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