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    ’भारतीय स्वतंत्रता संग्राम- एक संघर्ष गाथा ’

    प्रस्तावना-

    मानव इतिहास में भारतीय स्वतंत्रता संग्राम एक अनोखी मिसाल है। इसमें सभी वर्गों के लोगों ने सभी प्रकार की जाति, पंथ, या धर्म से ऊपर उठकर एवं एकजुट होकर एक उद्देश्य के लिए काम किया। यह एक पुनर्जागरण था। यह लोगों की विभिन्न पीढ़ियों का संघर्ष और बलिदान था जिसके परिणामस्वरुप स्वतंत्रता प्राप्त हुई और राष्ट्रीय सम्मान प्राप्त हुआ।

    भारत एक परिचय -

     भारत विश्‍व की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक है जिसमें बहुरंगी विविधता और समृद्ध सांस्‍कृतिक विरासत है। इसके साथ ही यह अपने-आप को बदलते समय के साथ ढ़ालती भी आई है। आज़ादी पाने के बाद भारत ने बहुआयामी सामाजिक और आर्थिक प्रगति की है। भारत कृषि में आत्‍मनिर्भर बन चुका है और अब दुनिया के सबसे औद्योगीकृत देशों की श्रेणी में भी इसकी गिनती की जाती है। विश्‍व का सातवां बड़ा देश होने के नाते भारत शेष एशिया से अलग दिखता है । विष्णु पुराण के अनुसार -
    उत्तरं यत् समुद्रस्य हिमाद्रेश्चैव दक्षिणम् |
    वर्षं तद् भारतं नाम भारती यत्र सन्ततिः ||
    अर्थात् समुद्र के उत्तर में और हिमालय के दक्षिण में जो देश है उसे भारत कहते हैं तथा उसकी संतानों (नागरिकों) को भारती कहते हैं।
     भारत राष्ट्र की विशेषता पर्वत और समुद्र ने तय की है और ये इसे विशिष्‍ट भौगोलिक पहचान देते हैं। उत्तर में बृहत् पर्वत श्रृंखला हिमालय से घिरा यह कर्क रेखा से आगे संकरा होता जाता है। पूर्व में बंगाल की खाड़ी, पश्चिम में अरब सागर तथा दक्षिण में हिन्‍द महासागर इसकी सीमा निर्धारित करते हैं।       

    👉एक झलक आजादी के संघर्ष - 

    बात उन दिनों की है जब भारत को सोने की चिड़िया कहा जाता था। 17वीं शताब्दी में अंग्रेज़ व्यापार करने भारत आए, उस समय यहां मुगलों का शासन था। धीरे-धीरे अंग्रेजों ने व्यापार के बहाने अपनी सैन्य ताकत को बढ़ाया और कई राजाओं को धोखे से युद्ध में हरा के उनके क्षेत्रों को अपने अधीन कर लिया। 18वीं सदी तक ईस्ट इंडिया कंपनी के नाम से अपना वर्चस्व स्थापित कर, अपने आस-पास के क्षेत्रों को वशीभूत कर लिया।हमें एहसास हो चुका था कि हम गुलाम बन चुके हैं। हम अब सीधे ब्रिटानी ताज़ के अधीन थे। शुरू-शुरू में अंग्रेजों ने हमें शिक्षित करने या हमारे विकास का हवाला देकर हम पर अपनी चीज़े थोपना शुरू कि फिर धीरे-धीरे वह, उनके व्यवहार में शमिल हो गया और वे हम पर शासन करने लगे।अंग्रेजों ने हमें शारीरिक, मानसिक हर तौर से प्रताड़ित किया। इस दौरान कई युद्ध भी हुए, जिसमें सबसे प्रमुख था द्वितीय विश्व युद्ध, जिसके लिए थोक के भाव में भारतीयों की सेना में जबरन भर्ती की गयी। भारतीयों का अपने ही देश में कोई अस्तित्व नहीं रह गया था, अंग्रेजों ने जलियांवाला बाग जैसे नरसंहार को भी अंजाम दिया और भारतीय केवल उनके दास मात्र बन के रह गए थे।इस संघर्षपूर्ण वातावरण के बीच 28 दिसम्बर 1885 को 64 व्यक्तियों द्वारा राष्ट्रीय कांग्रेस पार्टी की स्थापना की गयी। जिसमें दादा भाई नौरोजी और ए-ओ-ह्यूम की महत्वपूर्ण भूमिका रही और धीरे-धीरे क्रान्तिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया जाने लगा, लोग बढ़ चढ़कर पार्टी में भाग लेने लगे।इसी क्रम में भारतीय-मुस्लिम लीग की भी स्थापना हुई। ऐसे ही कई दल सामने आये और उनके अतुल्य योगदान का ही नतीज़ा है कि हमें स्वतंत्रता प्राप्त हुई। जिसके लिए कई वीरों ने गोली खाई और कईयों को तो फांसी हुई, कई मांओं की कोखें रोईं।भारत की स्वतंत्रता के लिये अंग्रेजों के विरुद्ध आन्दोलन दो प्रकार का था , एक अहिंसक आन्दोलन एवं दूसरा सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन । भारत की आज़ादी के लिए 1857 से 1947 के बीच जितने भी प्रयत्न हुए , उनमें स्वतंत्रता का सपना संजोये क्रान्तिकारियों और शहीदों की उपस्थित सबसे अधिक प्रेरणादायी सिद्ध हुई । वस्तुतः भारतीय क्रांतिकारी आंदोलन भारतीय इतिहास का स्वर्ण युग है । भारत की धरती के जितनी भक्ति और मातृ - भावना उस युग में थी , उतनी कभी नहीं रही । मातृभूमि की सेवा और उसके लिए मर - मिटने की जो भावना उस समय थी , आज उसका नितान्त अभाव हो गया है ।

    👉उपसंहार - 

    जिस प्रकार एक विशाल नदी अपने उद्गम स्थान से निकलकर अपने गंतव्य अर्थात् सागर मिलन तक अबाध रूप से बहती जाती है और बीच - बीच में उसमें अन्य छोटी - छोटी धाराएँ भी मिलती रहती हैं , उसी प्रकार भारत की मुक्ति गंगा का प्रवाह भी सन् 1857 से सन् 1947 तक अजस्र रहा है और उसमें मुक्ति यत्न की अन्य धाराएँ भी मिलती रही हैं । भारतीय स्वतंत्रता के सशस्त्र संग्राम की विशेषता यह रही है कि क्रांतिकारियों के मुक्ति प्रयास कभी शिथिल नहीं हुए । भारत की स्वतंत्रता के बाद आधुनिक नेताओं ने भारत के सशस्त्र क्रान्तिकारी आन्दोलन को प्रायः दबाते हुए उसे इतिहास में कम महत्व दिया गया और कई स्थानों पर उसे विकृत भी किया गया । स्वराज्य उपरान्त यह सिद्ध करने की चेष्टा की गई कि हमें स्वतंत्रता केवल कांग्रेस के अहिंसात्मक आंदोलन के माध्यम से मिली है । इस नये विकृत इतिहास में स्वाधीनता के लिए प्राणोत्सर्ग करने वाले , सर्वस्व समर्पित करने वाले असंख्य क्रांतिकारियों , अमर हुतात्माओं की पूर्ण रूप से उपेक्षा की गई ।जिन शहीदों के प्रयत्नों व त्याग से हमें स्वतंत्रता मिली , उन्हें उचित सम्मान नहीं मिला । अनेकों को स्वतंत्रता के बाद भी गुमनामी का अपमानजनक जीवन जीना पड़ा । ये शब्द उन्हीं पर लागू होते हैं : 
    उनकी तुरबत पर नहीं है एक भी दीया ,
     जिनके खून से जलते हैं ये चिरागे वतन । 
    जगमगा रहे हैं मकबरे उनके , 
    बेचा करते थे जो शहीदों के कफन ।।

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    6 टिप्पणियाँ

    Thank You for giving your important feedback & precious time! 😊

    1. Enjoyed reading the article above , really explains everything in detail,the article is very interesting and effective.Thank you and good luck for the upcoming articles

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    2. मुझे नहीं पता था की मेरे दोस्तो के बीच एक प्रसिद्ध लेखक छुपा हुआ है। वास्तव में जिस तरह तुमने भारतीय स्वतंत्रता का उल्लेख किया है और वो भी संक्षेप्त में काबिले तारीफ है।

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