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    धर्म और राजनीति __

    धर्म और राजनीति __

    मेरे हिंदुस्तान की है पहचान धरम से,
    धरम से जगत गुरू का पद पाया है।
    जनम से मृत्यु तक, धरम ही धरम है,
    धरम का ध्वज ही सदा से लहराया है।
    धरम से राजनिति, राजनीति से धरम,
    सदियों से यही ही, नियम चला आया है।
    धर्म और राजनीति अलग करोगे कैसे,?
    धरम हमारे रग _रग में समाया है।।

    माता _पिता, पत्नी _पति, भाई _बहन, पुत्र _मित्र,
    सभी रिश्ते नाते बंधे धरम की डोर से।
    रात _दिन, भोर _शाम, धूप _छांव, शीत _घाम,
    जल, थल और नभचर हैं धरम से।।
    धरती,पताल, नभ, स्वर्ग, नरक में भी,
    धरम की माया और धरम की काया है,।
    धर्म और राजनीति अलग करोगे कैसे?
    धरम हमारे रग _रग में समाया है।।

    खान, पान, आन, मान, ध्यान में भी धरम है,
    मानव को मानव से धरम ही जोड़ता।
    लोटे, थाली, चम्मच, गिलास का भी धरम है,
    धरम ही न्याय की तराजू से है तौलता। 
    धरम से क्रांति हुई, धरम से शान्ति हुई,
    धरम ने उजली किरण दिखलाया है।
    धर्म और राजनीति अलग करोगे कैसे?
    धरम हमारे रग _रग में समाया है।।

    धरम की आड़ में जो, क्षुद्र वृत्ति पनपी है,
    उसको हटाने में तुम्हारा साथ देगें हम।
    धरम को छोड़ अधरम की न बात करो,
    जब तक जिएंगे, न धरम को छोड़ें हम।
    "धार्यति इति धर्म" परिभाषा धरम की,
    धरम ने जीने की कला को सिखलाया है।
    धर्म और राजनीति अलग करोगे कैसे?
    धरम हमारे रग _रग में समाया है।।

    जब तक जगत है, धरम रहेगा यहां,
    धरम ही धरती का भार है उतारता।
    ममता, दया, की ज्योति, दिल में जगाता है ये,
    धरम ही लोक _परलोक को सवारता।।
    धरम ही सत्य और धरम ही पुण्य भी है,
    आदि और अनादि में भी धरम की छाया है।
    धर्म और राजनीति अलग करोगे कैसे?
    धरम हमारे रग _रग में समाया है।।


    -डा शिव शरण श्रीवास्तव "अमल "

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