*ग़ज़ल*
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काली घटा गगन में ये कैसी छा रही है
बरसात की अदा है जो सबको भा रही है।
मिट्टी से सौंधी सौंधी खुशबू सी आ रही है
प्यासे हैं लव जमीं के पानी पिला रही है।
नाचे मयूर मनवा कोयल भी गा रही है
संगीत की लहर में नगमें लुटा रही है।
यौवन है सब्जियों पर हरियाली छा रही है
दिल दिल से मिल रहा है मस्ती सी आ रही है।,,,,,, गोपी साजन