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    त्रिपावनी बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष आलेख*

    आप सभी को 'बुद्ध पूर्णिमा" की मेरी बहुत बहुत हार्दिक शुभकामनाएं।

    *त्रिपावनी बुद्ध पूर्णिमा पर विशेष आलेख*


    महात्मा गौतम बुद्ध का नाम बचपन में सिद्धार्थ था। राजकुमार सिद्धार्थ इक्ष्वाकु वंशीय एक क्षत्रिय शाक्य कुल राजपूत महान राजा शुद्धोधन के पुत्र और एक विशाल साम्राज्य व राजमहल के राजकुमार थे। इनकी माता का नाम महारानी महामाया था।सिद्धार्थ का जन्म ईस्वी पूर्व 563 वैशाख शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को लुम्बिनी,नेपाल में हुआ था। इनके जन्म लेने के 7 दिन बाद ही माताजी का निधन हो जाने के कारण,महारानी की सगी बहन,इनकी सगी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने शिशु सिद्धार्थ का पालन-पोषण किया। गौतम बुद्ध भगवान विष्णु के अवतार थे। इनके कुल गुरु ऋषि विश्वामित्र थे और भी अन्य गुरुओं में अलारा,उद्दाका और रामापुत्त आदि थे। विश्वामित्र से सिद्धार्थ ने वेद उपनिषद की शिक्षा,युद्ध विद्या के बहुत से कौशलों को सीखा। गुरुओं से ही घुड़सवारी आदि अन्य राजकीय विद्याओं को सीखा। सिद्धार्थ जन्मसे ही सनातनी थे और वैदिक सनातन धर्म के पुजारी और बहुत धार्मिक तथा बड़े दयालु थे।

    एक बार का प्रसंग है इनके चाचा के लड़के देवदत्त ने एक हंस पर अपना बाण चलाया और शिकार हंस घायल होकर ज्यादा उड़ नहीं सका। वो कुछदूर उड़ते हुए जाकर महल के राजकुमार सिद्धार्थ के पास जा गिरा और वह तड़पने फड़फड़ाने लगा।
    जीवों पर दया दृष्टि रखने वाले राजकुमार सिद्धार्थ ने उस हंस पर दया कर उसे उठाया,उसका बाण निकाला,बहते हुए खून व घाव को धुला और उसकी मरहम पट्टी कर उसकी जान बचाया। देवदत्त अपने शिकार की खोज करते हुए सिद्धार्थ के पास आये और अपना शिकार हंस उनसे मांगने लगे। राजकुमार सिद्धार्थ ने कहा कि हम ये हंस नहीं देंगे हमने इसकी जान बचाया है।इस बात पर दोनों में बहस होने लगी,जब बहस ज्यादा बढ़ गयी तो राज्य के लोगों ने यह बात महाराजा शुद्धोधन तक पहुंचाई।

    यह बात जब राजा तक पहुंची तो राजा ने दोनों को दरबार में बुलाया और राजा के सामने दोनों ने अपनी-अपनी बात रखी। राजा ने दोनों की बात ध्यान से सुनने के बाद अपने न्यायपूर्ण फैसले में कहा-
    "मारने वाले से बचाने वाले का अधिकार बड़ा होता है।"
    प्रिय देवदत्त इस हंस पर अब तुम्हारा कोई भी अधिकार नहीं है,क्योंकि तुमने इस पर अपने बाण चला कर इसे मारना चाहा,घायल किया और सिद्धार्थ ने इस घायल हंस की जान बचाई है।

    राजकुमार सिद्धार्थ बचपन से ही धार्मिक विचार और प्रभु मार्गी थे। समय के साथ राजकुमार सिद्धार्थ बड़े हुए और उनका शादी विवाह भी हुआ। इनकी पत्नी को एक सुंदर बच्चा भी हुआ।यह बच्चा अभी बहुत छोटा ही था,किन्तु सिद्धार्थ का मन पत्नी प्रेम व बच्चे के मोह,राज पाट और वैभवशाली जीवन में तो लग ही नहीं रहा था,वह सदैव ईश्वर के प्रति सोचते रहते थे। 

    एक दिन वे एक शवयात्रा में चार लोगों को अपने कन्धे पर एक अर्थी रख एक शव को ले जाते हुए देखा। शव के साथ चलने वालों के मुँह से "राम नाम सत्य है-सब की यही गत्य है" बोलते हुए सुना। इस दृश्य को देख राजकुमार सिद्धार्थ को यह ज्ञात हो गया कि जीवन का यही एक मात्र सच है। इस परिदृश्य से भी राजकुमार सिद्धार्थ का मन और भी ईश्वर के प्रबल अशक्ति के प्रति उद्वेलित हो उठा। अब उनका मन राजमहल में और किसी राजपाट के कार्य में बिल्कुल भी नहीं लग पा रहा था। 

    वह अपनी सुंदर राजकुमारी पत्नी यशोधरा,सुंदर बच्चा राहुल, सुंदर वैभवशाली जीवन,सुंदर राजपाट तथा सुंदर राजमहल सब कुछ छोड़ने का निर्णय लेकर इसका त्याग कर दिया और इस माया मोह और बंधन से मुक्त हो वैराग्य लेकर,सब कुछ त्याग कर भविष्य के लिए सन्यासी जीवन धारण करने हेतु और ज्ञान तथा मोक्ष की प्राप्ति की तलाश में निकल पड़े,फिर कभी वह वापस अपने राजमहल नहीं लौटे।

    यहाँ एक बात विशेष गौर करने वाली और सब के जानने के लिए जरुरी है। वह यह है कि गौतम बुद्ध का जन्म भी पूर्णिमा को हुआ। उनको परम ज्ञान भी पूर्णिमा के दिन ही प्राप्त हुआ।यही नहीं उनका परिनिर्वाण भी पूर्णिमा के दिन ही हुआ। इसी लिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की इस पूर्णिमा तिथि को हम विशेष पूर्णिमा या बुद्ध पूर्णिमा और त्रिपावनी बुद्ध पूर्णिमा भी कहते है। गौतम बुद्ध ने ही धम्म की स्थापना की जिसका अर्थ धर्म नहीं बल्कि जीने का एक सच्चा और सरल रास्ता। उनकी दृष्टि में सभी मनुष्य एक सामान हैं।किसी पर जीत के लिए युद्ध जरुरी नहीं बल्कि बुद्ध यानि बुद्धि की जरुरत होती है। मनुष्य के बुद्धि, विवेक और ज्ञान में वह शक्ति होती है जो किसी के भी ऊपर यहाँ तक कि अंगुलिमालि जैसे क्रूर डाकू के ऊपर भी विजय प्राप्त कर सकती है।

    बुद्ध एक श्रमण थे। भिक्षा,तपस्या,ध्यान ही उनका दैनिक कार्य राह गया। वे परम ज्ञान की खोज एवं मोक्ष की प्राप्ति में ही वह अपने जीवन पर्यन्त लगे रहे,तपस्या करते रहे। सिद्धार्थ को वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को बोधगया में ही पीपल वृक्ष के नीचे तपस्यारत रहते 35 वर्ष की आयु में ही ज्ञान प्राप्त हुआ। ज्ञान प्राप्ति के बाद अपने जीवन को सार्थक बनाते हुए अपने अंतिम समय परिनिर्वाण के समय दुनिया को गौतम बुद्ध ने यही सन्देश दिया।

    "बुद्धम शरणम गच्छामि। धम्मम शरणम गच्छामि।संघम शरणम गच्छामि।"

    महात्मा गौतम बुद्ध ने कहा है "अगर हम किसी के जीवन में उसके दुःख का कारण हैं तो हमारा यह जीवन व्यर्थ है,किन्तु यदि हम किसी के जीवन में उसके सुख का कारण बनते हैं तो ही हमारे इस दैहिक जीवन का सच्चा अर्थ है।"

    आज विश्व के लगभग 200 देशों में बौद्ध धर्म और धम्म के अनुयायी हैं,और उनके बताये गए मार्ग पर सभी चल रहे हैं। सारनाथ,कुशीनगर,साँची आदि अनेकों स्थान पर देश-विदेश में बौद्ध स्तूप बने हुए हैं,जहाँ नित्य लोग दर्शन करने हेतु और मन को शांति प्राप्ति करने हेतु असंख्य संख्या में जाया करते रहे हैं।
    भगवान गौतम बुद्ध को कुशीनगर में वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा तिथि को ही परिनिर्वाण भी प्राप्त हुआ। यह कितना सुखद सुयोग है कि भगवान बुद्ध का जन्म,ज्ञान प्राप्ति एवं मोक्ष
    प्राप्ति तीनों का ही माह,पक्ष,तिथि सबकुछ एक ही है। अर्थात 
    तीनों चीजें वैशाख मास,शुक्ल पक्ष की तिथि पूर्णिमा को है।

    आइये,हम सब भगवान गौतम बुद्ध की पुण्य जन्म जयंती यानी जन्मदिवस "त्रिपावनी बुद्ध पूर्णिमा" के इस पावन पर्व पर हम सभी यह संकल्प लें कि हमारे मन,कर्म और वचन से हम सब मानवता का धर्म निभाएंगे और किसी भी प्राणिमात्र को कोई भी कष्ट अपनी ओर से कभी नहीं होने देंगे।

    हम अपने इन हाथों समाजहित के लिए सुंदर से सुंदर अर्थपूर्ण परोपकार करेंगे,निरीहों की सेवा करेंगे और अपने बल से किसी निर्बल को सतायेंगे नहीं बल्कि उसका उपकार करेंगे।अपने इस जीवन को हम ईश्वर कृपा से मनुष्य रूप में धरती पर जन्म लेने के इस सौभाग्य सुअवसर को सफल बनाएंगे तथा सत्य का ही मार्ग अपनाएंगे। बुद्ध के दिखाये मार्ग पर चलते हुए आगे बढ़ते जायेंगे।

    आप सभी को इस पावन पुनीत शुभ दिन "बुद्ध पूर्णिमा" की बहुत-बहुत हार्दिक बधाई एवं मंगल शुभकामनायें।


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    आलेख :

    *डॉ.विनय कुमार श्रीवास्तव*
    अवकाश प्राप्त वरिष्ठ प्रवक्ता-पी.बी.कालेज,प्रतापगढ़,उ प्र.

    1 टिप्पणियाँ

    Thank You for giving your important feedback & precious time! 😊

    1. गौतम बुद्ध पर मेरा लिखा यह मौलिक आलेख प्रकाशित करने के लिए आपको मेरा बहुत बहुत हार्दिक धन्यवाद एवं आभार आदरणीय।

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