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    चल इंसानियत ढुँढते है


    हर गांव वा हर एक गली में ढुँढते है
    हर नुक्कड व हर एक चौराहे पे ढुँढते है
    हर एक कस्बे व हर एक शहर में ढुँढते है

    चल इंसानियत ढुँढते है

    हर एक घर के अंदर व बाहर ढुँढते है
    हर एक दुकान व हर एक शोरूम में ढुँढते है
    हर एक आफिस व हर कंपनी में ढुँढते है

     चल इंसानियत ढुँढते है

    छोडे बच्चे से लेकर हर एक वयस्क में ढुँढते है
    नौजवान आदमी व औरत से लेकर हर एक बुजुर्ग में ढुँढते है
    हर एक अमीर व हर एक गरीब मे ढुँढते है

     चल इंसानियत ढुँढते है

    तुझमें ढुँढते है , खुद में ढुँढते है
    अपनों में ढुँढते है , गैरों में ढुँढते है
    हर जगह ढुँढते है , इस जहाँ में ढुँढते है

     चल इंसानियत ढुँढते है

    ✍️राहुल . . . 

    12 टिप्पणियाँ

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