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    जल संरक्षण

    जल यद्यपि प्राकृतिक उपहार है परन्तु संरक्षण की समस्या सबसे निकट है। पृथ्वी के धरातल पर जो भी जलशक्ति है यह अपार लगाते हुए भी बहुत सीमित है। यदि प्रति व्यक्ति एक दिन में केवल 20 लीटर पानी का उपयोग करें तो एक दिन में पूरे संसार के लिए 1,360000000000 किलोलीटर पानी की आवश्यकता पड़ती है जिससे सिंचाई, पशुओं के लिए जो जल की आवश्यकता पड़ती है। यह सम्मिलित नहीं है।

    विश्व में जल की मात्रा अनियमित है। सभी देशों या क्षेत्रों में जल की मात्रा समान नहीं है। विश्व में औसत वार्षिक वर्षा 999 मिलीमीटर है परन्तु इस वर्षा का वितरण समान नहीं है। अर्द्ध शुष्क प्रदेशों में यह 2000 मिलीमीटर आंकी गई जबकि अर्द्ध आई प्रदेशों में यह मात्रा बढ़ते-बढ़ते आई प्रदेशों में 1000 से 1500 मिलीमीटर तक हो जाती है। अत्यधिक आद प्रदेशों में वर्षा की औसत मात्रा कभी-कभी 2000 मिलीमीटर से भी अधिक आंकी गई हैं विश्व में वर्षा की जो अनियमितता है वह इतनी अधिक है कि कुछ भाग साल भी अतिवृष्टि के अन्तर्गत आते हैं तो कुछ क्षेत्रों में अनावृष्टि के कारण रेगिस्तानी भाग फैले हैं।

    जल संरक्षण के लिए प्रवाह प्रणाली (Waterhed Approach) महत्वपूर्ण सिद्धान्त है। इसमें नदियों के स्रोतों का सुनिश्चित प्रबन्ध करना होता है। इस सिद्धान्त के अनुसार जब तक नदियों के ऊपरी भाग सुरक्षित नहीं है। तब तक नदियों के निचले क्षेत्रों की सुरक्षा असम्भव है। इसलिये जल संरक्षण के अन्तर्गत ऊपरी प्रवाह प्रणाली के कटाव की सुरक्षा करनी चाहिए जिससे निचले प्रवाह प्रणाली का भी संरक्षण हो सके। कई नदियों के प्रवाह क्षेत्र में मिट्टी का कटाव बड़ा सक्रिय है।

    नदियों का एक निश्चित धारा में बहाव कई नदियाँ ऐसी हैं जो एक निश्चित धारा में न बहकर हमेशा अपना मार्ग बदलती रहती है जैसे कोसी नदी वह प्रतिवर्ष उत्तरी बिहार में कई सौ किलोमीटर क्षेत्रफल को बर्बाद कर देती है, जिससे नदी के निचले भागें में बाढ़ के कारण कई सौ वर्ग किलोमीटर का क्षेत्रफल बर्बाद हो जाता है। इसलिए नदियों को एक निश्चित बहाव में ही बहने के लिए दीवारें या तटबन्ध बना देना चाहिए। इस प्रकार के तटबन्धों की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि वर्षा के समय नदी का जल इधर-उधर नहीं फैलने पाता है।

    जाल बोध कर एक निश्चित धारा में नदी के प्रवाह को बनाने या रेलमार्ग की सुरक्षा के लिए ऐसा किया जाता है। इसमें नदी के पानी का फैलाव नहीं हो पाता है तथा मिट्टी का कटाव भी रुक जाता है। कभी-कभी सीमेन्ट की शिलाएँ बनाकर भी बहाव को सतत् बनाया जाता है।
    बाढ़ नियंत्रण के जितने भी तरीके हैं उनसे जल संरक्षण एवं मिट्टी के कटाव को रोकने में सहायता मिलती है।

    जल का सिंचाई के रूप में प्रयोग जल संसाधनों के संरक्षण के लिए जल का उपयोग सिंचाई के कार्यों में महत्त्वपूर्ण स्थान रखता है। जल का जो उपयोग भारत के विभिन्न राज्यों में हो रहा है। यदि जल संसाधनों के संरक्षण की उचित योजनाएं न बनाई गई तो प्रति वर्ष लाखों हेक्टयर भूमि जल प्लावित होकर बर्बाद हो जाती है।

    " जल के द्वारा विद्युत निर्माण की योजनाएँ कार्यान्वित करना जल का सबसे उचित पूर्व कार उपयोग है। विश्व के अधिकांश देशों ने जल का उपयोग तो सिंचाई के रूप में किया है या जन विद्युत के रूप में किया है। उत्तरी अमेरिका ने अपने जल संसाधनों का संरक्षण करने के लिए नावापा (NAWAPA) योजना बनाई है। जिसमें सभी जल भण्डारों को मैकन्जी नदी से लैबोडोर तक जोड़कर उसके उपयोग की गई योजनाएं चलायी है।

    आन्तरिक यातायात का विकास जल के संरक्षण एवं बहते हुए जल को उपयोग, इंग्लैण्ड, फ्रांस, जर्मनी तथा अन्य यूरोपीय देशों व उत्तरी अमेरिका ने जल संसाधनों का पूर्ण उपयोग आन्तरिक यातायात का विकास करके उपयोग किया है। नावो के चलाने में इस जल का उपयोग होता है।

    जल को व्यर्थ न बहने दिया जाये जल के संरक्षण के लिए अतिरिक्त जल को व्यर्थ न बहने दिया जाये, यह एक बहुत प्राचीन तरीका है। जापान ने अपनी छोटी-छोटी नदियों पर बांध बनाकर जल को व्यर्थ बहने से रोका है। ताकि आवश्यकता पड़ने पर उस जल का उपयोग करते हैं। भारत में बांधो का निर्माण केवल सिंचाई कार्यों के लिए या विद्युत उत्पादक के लिए ही महत्त्वपूर्ण स्थान रखती है। वर्षा के समय काफी जल बिना उपयोग किए ही समुद्र में जमा हो जाता है। नलों पर जो जल की मात्रा है उसका मनुष्य मनचाहा उपयोग करते हैं तथा जब आवश्यकता न हो तो नल से पानी निकलता एवं व्यर्थ करता रहता है। केवल भार में प्रतिदिन 340,00,00,000 क्विन्टल जल का उपयोग खाना पकाने, पीने, कपड़ा धोने के काम में आता है, इतना पानी हम लोग हर रोज इस्तेमाल करते हैं। हमें यह सोचना चाहिए कि यह पानी कहाँ से आता है यदि वह प्राकृतिक उपहार नहीं होता तो कितनी कीमत इसकी चुकानी पड़ती।

    समीक्षा त्रिपाठी

    5 टिप्पणियाँ

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