तुम ईश्वर हो या अल्लाह, लोगो ने तुमको छाट दिया.... ये धर्म बनाने वाले ने तुमको ... दो धर्मो में बाट दिया ||
चार दिन दी चांदनी है, जो पाया वो खोता है, मानू अगर मै दोनों को,तो लोगो को कुछ होता है.. हम सब को उकसाने में, इन्हीं लोगो ने हाथ दिया.. ये धर्म बनाने वालो ने तुमको दो धर्मो में बाट दिया ।।
तुम पर संत मौलवी जो भी बोले, मै बोलु तो हल्ला हो, हाथ जोडू तो ईश्वर हो तुम, हाथ फैलाऊ तो अल्लहा हो..... सबका मालिक एक ही है, उसने सबको टाट (गुथना) दिया.. ये धर्म बनाने वालो ने तुमको दो धर्मो में बाट दिया ।।
दर दर को तू भटके,क्यों तू माला बुनता है, एक बात बता दू आपको, सबका एक ही सुनता है.... मरने बाद कुछ नहीं है, ये सबको एक में पाट दिया..... ये धर्म बनाने वालो ने तुमको दो धर्मो में बाट दिया
जय हिन्द.......
shahid baksh
बहुत ही बढ़िया कविता है ।बहुत गहराई से प्रकाशित किया गया है इसके राइटर को मेरा नमन।
जवाब देंहटाएंSuraj Gupta
जवाब देंहटाएंबहुत खुब
जवाब देंहटाएंसही कहा भाई
जवाब देंहटाएंLajvvvab yr
जवाब देंहटाएंSuper
जवाब देंहटाएंAre wah...
जवाब देंहटाएंNice thing
जवाब देंहटाएं👍👌
जवाब देंहटाएंVery nice
जवाब देंहटाएंMughe accha lga
जवाब देंहटाएंVery nice 😍😘❤💖
जवाब देंहटाएंBahut badhiya mere dost shahid baksh
जवाब देंहटाएंChha ge guru
जवाब देंहटाएंKya bat hai..
जवाब देंहटाएंWow bhai shahid
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