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    जिज्ञासा

    जिज्ञासा का अर्थ है जानने की इच्छा ! जिज्ञासा ज्ञान की महान जननी है जिज्ञासा मानव जीवन के विकास का बहुत बड़ा आधार है जो जिज्ञासु है जानने के लिए उत्सुक है वही जानने के लिए प्रयत्न भी करेगा जिज्ञासा के जगते किसी बात को जान सकने का सहायक ज्ञान स्वयं ही विकसित होने लगता है ज्यों ज्यों जिज्ञासा गहरी होती जाती है ज्ञान भी बढ़ता जाता है 
     एकाग्रता, तन्मयता, तल्लीनता, के साथ विषय प्रवेश जिज्ञासु व्यक्ती के विशेष गुण होते हैं जिज्ञासा की विशेषता ही मनुष्य को पशुओं से भिन्न करती है वैसे ही जिज्ञासा के अभाव में मनुष्य भी अन्यों की तरह दो हाथ पैर वाला पशु ही है 
    आत्म स्वरूप का ज्ञान जिज्ञासा द्वारा ही सम्भव है हम वस्तुतः क्या- यह बोध तभी हो सकता है, जब हम उसको जानने के लिए उत्सुक और उत्कंठित हो जिस विषय मे कोई रुचि कोई उत्कंठा नहीं होती उसे कदापि नहीं जाना जा सकता है 
    जिज्ञासा में स्वयं अपनी ज्ञान शक्ति होती है मनुष्य की जिज्ञासु वृत्ति ने ही उसे दार्शनिक, आध्यात्मिक, वैज्ञानिक और अन्वेषक बनाया है 
    यदि जिज्ञासा न होती तो मनुष्य में इस प्रकार के प्रश्न क्यूँ ही जागते की वह क्या है? य़ह विराट विश्वा क्या है? इसका रचयिता कौन है? और इस संपूर्ण सृष्टि रचने का प्रयोजन क्या है? इन सबका आदि कहा से प्रारंभ होता है? अंत कहा होगा? और क्यों इन प्रश्नों के उत्तर को खोजने मे परिश्रम करता !
    जिज्ञासा के अभाव में मनुष्य आज जिस ज्ञान पूर्ण स्थिति में आया हुआ है कभी नहीं आता य़ह जिज्ञासा की ही प्रेरणा है कि आज मनुष्य का ज्ञान भंडार इतना विशाल हो सका है और आगे इस ज्ञान भंडार में जो कुछ भी वृद्धि होगी उसका भी मुख्य कारण जिज्ञासा होगी 
    मनुष्य के भीतर की जिज्ञासा ही उसे नए पथ पर चलने की प्रेरणा देती है
    आज भी जिसमें जिज्ञासा का प्राधान्य होता है ज्ञान के क्षेत्र मे वे ही आगे निकल पाते है यदि जिज्ञासा के मात्रा में अन्तर न होता तो सभी एक जैसे समान स्तर के ज्ञानी, दार्शनिक, आध्यात्मिक, कवि, कलाकार, शिल्पी, और वैज्ञानिक होते यदि जिज्ञासा के अभाव में य़ह सब सम्भव हो सकता तो संसार के प्रत्येक मनुष्य विद्वान और वैज्ञानिक हो सकता था मनुष्य में ज्ञान का कम ज्यादा होना भी जिज्ञासा की मंदता और तीव्रता पर निर्भर करता है यह कहना गलत नहीं होगा की जिज्ञासा ही मनुष्य को जीना सिखाती है ।
    जिज्ञासा से शारीरिक, मानसिक, आध्यात्मिक, और बौद्धिक चारो उन्नतियों की हित होती है मनुष्य को अपनी जिज्ञासा को प्रमाद पूर्वक कष्ट नहीं करना चाहिए उसे विकसित एवं प्रयुक्त करना चाहिए और यदि जिसमें जिज्ञासा नहीं है तो उसे चाहिए कि वह तब तन्मयता एवं गहरे पठन के अभ्यास से उसे पैदा करे क्योंकि जिज्ञासा भौतिक एवं आध्यात्मिक दोनों महान क्षेत्रों मे प्रगति एवं उन्नती का आधार बनती है 
     वास्तव में जितना ज्ञान और विज्ञान हमें दिखाई देता है उसके पीछे मनुष्य की जिज्ञासा का महत्तवपूर्ण भूमिका रहीं हैं जिज्ञासा के कारण विभिन्न प्रकार के विषयों का ज्ञान प्राप्त कर मनुष्य ने आदिम अवस्था से इतनी प्रगति की है
    किसी भी चीज के लिए मन मैं जिज्ञासा पैदा होना अंदर की सीखने की क्षमता को दर्शाता है । बिना जिज्ञासा के मनुष्य के अंदर नई चीज को सीखने की प्रेरणा ही नहीं होगी । जीवन की जिज्ञासाओं को शांत ज़रूर करें, लेकिन अपनी जिज्ञासा कभी ख़त्म ना होने दें. जब तक जीवन चलता रहेगा जिज्ञासा अलग-अलग रूपों में हमें नई-नई राहें दिखती रहेगी.
                                                        - लक्ष्मी शुक्ला

    12 टिप्पणियाँ

    Thank You for giving your important feedback & precious time! 😊

    1. बहुत अच्छा ❤️बहुत अच्छा ❤️

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    2. ❤️❤️❤️Nice 👍👍👍👍

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    3. अति प्रशंसक शब्द

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