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    बस चुप रहता हुँ

    भविष्य की चिंता मे दिन रात जलता हूं,
    रोज देर रात तक नए सपने बुनता हूँ,
    मुझे भी अच्छा लगता है सबकी तरह रहना, हसना मुस्कुराना.... पर कुछ सोच कर ही चुप रहता हूँ

    कुछ जिम्मेदारियाँ हैं मुझ पर भी अपनों की,
     कुछ ख्वाहिशे हैं मुझ पर भी सपनों की,
    मेरे अंदर भी हैं कुछ अनसुनी कहानियाँ, अनसुने किस्से...
    पर है तो ये भी मेरे जीवन के ही कुछ हिस्से..
    है तो मेरे पास भी बहुत कुछ कहने और बताने को,
     पर सुनेगा कौन मेरी ये सोचकर चुप रहता हूँ, मै अभ्यार्थी (बेरोजगार) हूं, साहब इसीलिए चुप रहता हूं,सबकी सुनता हू बस चुप रहता हूँ और बस चुप रहता हूं।।
         निशांत श्रीवास्तव

    3 टिप्पणियाँ

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