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    विश्व शाकाहारी दिवस पर विशेष

    कितने पुण्य उदय होने पर,
    मानव जीवन मिलता है ?
    जान बूझकर फिर क्यो वह,
    इतनी उदण्डता करता है ?

    नही किसी की भी सुनता है,
    नही किसी की गुनता है।
    ठोकर खाता, पछताता है,
    फिर भी नही सुधरता है ।।

    तन है जर्जर,मन भी दूषित,
    भाव भी कुंठित हो जाते ।
    चीत्कार कर रही आत्मा,
     लत से बाज नही आते ।।

    जिन जीवो की रक्षा का है,
    भार मनुज के कंधे पर ।
    मार_काट कर उन्हे बेचता,
    उतर घिनौने धंधे पर ।।

    ऋषि_ मुनियों की संतानो,
    क्या हुआ तुम्हे क्या करते हो ।
    जीव तुम्हारे सहभागी हैं,
    इनका भक्षण करते हो ।।

    जितने भी जननायक थे,
    लगभग सब शाकाहारी थे ।
    गांधी,तिलक,कबीर,गोखले,
    सभी अहिंसा धारी थे ।।

    वर्षो ठहरे ्राम,लक्ष्मण,
    वनवासीय बसेरों में ।
    अमृत रस सा मिला जायका,
    था शबरी के बेरो में ।।

    माखन ,मिश्री , दूध, दही खा,
    दानव दल संहारी थेे ।
    गीता ज्ञान सिखाने वाले,,
    गिरधर शाकाहारी थे ।।

    दिव्य, अलौकिक , पंथ_प्रदर्शक,
    पतितों के उद्धारक थे।
    महावीर, बुध,नानक, साई,
    शाकाहार समर्थक थे।।

    घास फूस खाकर राणा ने,
    धूल चटाया अकबर को ।
    पोरस ने पौरुष दिखलाया,
    सेल्युकस और सिकंदर को ।।

    सनातनी संस्कृति,सभ्यता,
    सदा यही सिखलाती है।
    जीव मात्र से प्रेम करो,
    यह ही संदेश सुनाती है।।

    फिर क्यों लेकर आड़ धर्म की,
    कत्ले आम कराते हो।
    मार काट कर जीवों को,
    त्यौहारे जश्न मनाते हो ।।

    बेजुवान पशु की लाचारी,
    में क्यों खुशी मनाते हो ।
    दिब्य अंश के वंशज हो,
    क्यो कुल में दाग लगाते हो।।

    मांस जीव का खाते हो,
    फिर भी इंशान कहाते हो ।
    मंदिर रूपी इस शरीर को,
    कब्रिस्तान बनाते हो ।।

    मटन , चिकन खाने से पहले,
    हाल जीव का लख लेते।
    सुई चुभा अपने तन में,
    अहसास दर्द का कर लेते।।

    कितनी पीड़ा होती है जब,
    एक कांटा चुभ जाता है।
    क्या होगी उसकी हालत,
    जिसका तन काटा जाता है।।

    कितना दर्द,वेदना कितनी,
    तड़पन कितनी भारी है।
    जीते जी जिसके शरीर पर ,
    चलती खडग दुधारी है।।

    अंतर के पट खोल देख लो ,
    पशु के आहत जीवन को ।
    मानव की यह देह बनी है,
    शुद्ध ,सात्विक ,भोजन को ।।

    नृप दिलीप के वंशज हम,
     जो,गाय चराने जाते थे ।
    सिंह सामने आ जाने से,
    खुद आगे बढ़ जाते थे ।।

    हम शिवि के बेटे,बेटी ,
    जिनके सत्कृत्य बोलते थे ।
    एक कबूतर की  रक्षा मे,
     अपना मांस तोलते थे ।।

    भानु प्रताप और कपटी मुनि,
    की गाथा क्या सुनी नही ।
    मांस पकाया धोखे से ,
    फिर भी कितनी दुर्गती हुई ।।

    मनु से लेकर मानव तक ,
    सारा इतिहास बताता है ।
    मांस खिलाने, खाने ,वाला,
    नर पिशाच बन जाता है ।।

    न्याय दृष्टि मे कुदरत की ,
    सब प्राणी एक बराबर हैं ।
    सबको जीने,रहने,खाने,
    के अधिकार जहां पर हैं ।।

    सभी प्राणियों में ईश्वर है ,
    यह मान्यता हमारी है ।
    जियो और जीने दो सबको ,।
    यही नीति स्वीकारी है।।

    मदिरा, मांस, तामसी भोजन,
    का जो भक्षण करते हैं।
    महामारियों के प्रकोप से,
    बिना मौत वे मरते हैं।।

    पंच गव्य के साथ_साथ जो,  
         सात्विक भोजन करते हैं।
    महामारियों के कुचक्र से,
    सदा सुरक्षित रहते हैं।।

    वक्त यही कह रहा मित्रवर,
    रीति सनातन अपनाओ।
    त्यागो मदिरा, मांस सभी जन,
    शाकाहारी बन जाओ।।

    :-डा शिव शरण श्रीवास्तव "अमल"

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