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    जिद, जूनून और साहस

    जिनमें जिद,जुनून और हौसला होता है वही लोग वास्तव में  एक दिन इतिहास रचते है।
    इतिहास गवाह है कि जिस इंसान ने अपने अंदर जिद पाला उसी ने इतिहास रचा...
    अक्सर हमने देखा है लोग सपने तो देखते है लेकिन उसे पूरा करने के लिए पूरी तरह कार्यरत नही हो पाते, कहीं न कही वो अपने मार्ग से भटक जाते हैं।

    जब इंसान के मन में किसी लक्ष्य,किसी सपने को लेकर एक जिद बन जाती है तो वह अपने सपनो को साकार करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हो जाता है।
        साधारण मनुष्य तो केवल इस दुनिया में आते है और मर कर चले जाते है लेकिन वही एक जिद और जुनून से परिपूर्ण व्यक्ति इतिहास पलटने की ताकत रखता है....वो बिना किसी की परवाह किए केवल अपने लक्ष्य के प्रति कर्तव्यनिष्ठ  होते है...
      
        इतिहास गवाह है कि जिनके अन्दर कुछ अलग करने का जिद,जुनून और साहस होता है केवल वही इंसान सफलता के शिखर तक पहुंचते हैं।
     एक ऐसी ही जिद, जुनून और हौसलों से भरी कहानी दसरथ मांझी की है.....
           दसरथ मांझी की पत्नी 57km तक फैले पहाड़ के नीचे गिर कर मर गई थी। उसी के बाद दसरथ मांझी के दिलो दिमाग में सिर्फ एक  लक्ष्य निर्धारित हो गया  और वह था कि इस पहाड़ को तोड़ना है....
      22 वर्ष लगे लेकिन उन्होंने हिम्मत नही हारी और केवल एक छेनी और हथौड़ी से 57km का एक पहाड़ तोड़ डाला...ये होती है एक जिद,जुनून और हौसलों से भरे व्यक्ति की ताकत।
    और कुछ ऐसी ही कहानी थी राष्ट्र के लिए सर्वस्व न्यौछावर कर हंसते हंसते अपने प्राणों की आहुति देने वाले वीर भगत सिंह जी की....
    सरदार भगत सिंह के माता पिता ने जब उन्हें उन्हें यह बताया कि उनकी विवाह तय कर दिया गया है तो अगले ही दिन वो एक चिट्ठी लिखकर घर से भाग गए कि मैंने यह शरीर देश के लिए दे दिया है...यह सिर्फ एक महिला के लिए नही है....
       यह मेरा शरीर भारत मां के लिए समर्पित है और भारत की स्वतंत्रता के लिए आंदोलन शुरू कर दिया.. उनमें जिद था इस भारत देश को आजाद कराने का, उनमें एक जुनून था भारत मां पर हुए अत्याचारों का बदला लेना का...
    देश को आजाद कराने का जिद, जुनून और साहस से वीर भगत सिंह जी हसते हसते फांसी पर चढ़ गए और एक नए इतिहास का निर्माण किया।
    और ऐसे ही थे हमारे वीर चंद्रशेखर आजाद जी....चंद्रशेखर आजाद ने कहा था मेरे जीते जी अंग्रेज तो क्या अंग्रेज की गोली भी मुझे छू नहीं सकती। उन्होंने अपने हाथों से स्वयं को गोली मार ली लेकिन अपने जीते जी अंग्रेजो को खुद को छूने नही दिया।

    और कुछ ऐसे ही थे मात्र 12 वर्ष के मलाला यूसुफजई जिनके सर में आतंकवादियों ने 3 गोलियां मारी थी.. उनको जिद थी पढ़ने कि और महिलाओं तक शिक्षा पहुंचाने की। सोचिए अगर आपके बच्चे को अगर 12 वर्ष की उम्र में गोली लग जाए तो क्या होगा ???लेकिन मलाला यूसुफजई ने अपने आंदोलन को और तेज कर दिया और इतनी कम उम्र में ही उनको विश्व का सर्वश्रेष्ठ NOVEL PEACE PRICE मिला।

    कहते हैं ये जिद है ना ये इंसान में एक अद्भुत ताकत भर देती है, एक आम इंसान वह सोच भी नही सकता जो एक जिद,जुनून और साहस से परिपूर्ण इंसान कर गुजरते हैं।
    जिंदगी में अगर सफलता के शिखर को छूना है तो अपने अंदर एक तूफान भरे जिद, जुनून और हौसलों को जन्म दो परिणाम स्वरूप ये जहां आपके कदमों में होगी।
    रख हौसला वो मंजर भी आयेगा, प्यासे के पास चल कर समुन्दर भी आयेगा...थक कर न बैठ ऐ मंजिल के मुसाफिर, मंजिल भी मिलेगी और मिलने का मज़ा भी आयेगा।
                         
       
                                                       निशांत श्रीवास्तव

    1 टिप्पणियाँ

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